सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Sunday, July 6, 2008

अधिकार

मैने तो ऐसा कोई अधिकार
कह कर तो
कभी तुम्हें दिया नहीं
की तुम जो कहोगे
मै मानूगी
फिर भी
जब भी तुमने
कुछ भी कहा मैने माना
क्योकी मै मानती हूँ
की तुम्हारा पूरा अधिकार है
मुझ पर
अधिकार की परिभाषा
रिश्तों की भाषा से
अलग होती है
कुछ रिश्ते अधिकार से बनते हैं
और कुछ रिश्तों मे अधिकार होता है
बिना नाम के रिश्तों मे
अधिकार नहीं प्यार होता है
और प्यार के बन्धन
बिना नाम के
एक दूसरे को
बंधते हैं ता उम्र
और इस बन्धन को
जो स्वीकारते है
वह दुनिया मे
अकेले नहीं होते है
पर अलग जरुर होते है


© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित

6 comments:

मीनाक्षी said...

बेहद खूबसूरत ख्याल... अंतिम पंक्तियों में तो रुहानी प्यार की सटीक परिभाषा है..
"वह दुनिया मे
अकेले नहीं होते है
पर अलग जरुर होते है" ----- स्त्य वचन ..

रश्मि प्रभा... said...

pyaar hamesha alag hi hota hai
bahut achhi

रंजू भाटिया said...

बिना नाम के रिश्तों मे
अधिकार नहीं प्यार होता है
और प्यार के बन्धन
बिना नाम के
एक दूसरे को
बंधते हैं ता उम्र

बहुत खूब रचना ...इसी प्यार से शायद दुनिया कायम है

शोभा said...

रचना जी
बहुत ही सुन्दर तथा भावपूर्ण पंक्तियाँ हैं-
कुछ रिश्ते अधिकार से बनते हैं
और कुछ रिश्तों मे अधिकार होता है
बिना नाम के रिश्तों मे
अधिकार नहीं प्यार होता है
और प्यार के बन्धन
बिना नाम के
एक दूसरे को
बंधते हैं ता उम्र
और इस बन्धन को
जो स्वीकारते है
वह दुनिया मे
अकेले नहीं होते है
पर अलग जरुर होते है
इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।

Kavita Vachaknavee said...

Saarthak abhivyakti ke lie badhaaee.

Kavita Vachaknavee said...

Saarthak abhivyakti ke lie badhaaee.