मेरे लिये जरूरी नहीं है
तुम्हारे सुर में सुर मिलायूं
तुम्हारी हां को स्वीकारूं
तुम्हारे तय किये निर्णय मानूं
तुम्हारे कंधे का सहारा लूं
तुम्हारी राह तकूं
क्योंकि
अपने अंदर की स्वयंसिद्धा मैं पहचान गई हूं
तुम्हें भी जान गई हूं
मौका पड़े तो भरी सभा में
देख सकते हो मेरा चीर हरण
इक जरा सी बात पर
दे सकते हो जगलों की भटकन
तुम्हारे सुर में सुर मिलायूं
तुम्हारी हां को स्वीकारूं
तुम्हारे तय किये निर्णय मानूं
तुम्हारे कंधे का सहारा लूं
तुम्हारी राह तकूं
क्योंकि
अपने अंदर की स्वयंसिद्धा मैं पहचान गई हूं
तुम्हें भी जान गई हूं
मौका पड़े तो भरी सभा में
देख सकते हो मेरा चीर हरण
इक जरा सी बात पर
दे सकते हो जगलों की भटकन
मनविंदर भिंभर
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
10 comments:
सही कहा अब यह हिम्मत हर नारी में जाग जाए ..सुंदर लिखा है आपने
बहुत बढिया.लिखती रहिये ऐसे ही.
good, lage raho..
es self confidence ki bahut
jaroorat hai..bahut kuchh sudhar
jaiga. thode shabdo mai bahut kuchh
kah dena..ye hi visheshta hai apki.
eslie..lage raho.
omkar, meerut
bahut hi achhi
achcha likha hai aapne
bhut sahi v bhut badhiya. jari rhe.
Nai unchaiyon ki taraf nahi...
Apne vastavic sthan ki or badhte kadam....NARI KE.....Is samaj me..
Shubhkamnaye
स्वागत है। एकदम सही लिखा आपने ।
Hai, Its so inspiring, motivating and wonderful. Keep going. All the best.
Dr. Noopur
स्वयंसिद्धा
मौका पड़े तो भरी सभा में
देख सकते हो मेरा चीर हरण
इक जरा सी बात पर
दे सकते हो जगलों की भटकन
बहुत अच्छी कविता
किन्तु मनविन्दर जी न तो सभी नारी स्वयं-सिद्धा होती हैं और नहीं सभी पुरुष युधिष्ठर और राम, हां, नारी को आगे बढने के लिये आदर्श प्रस्तुत करने वाली कविता है.
rashtar permi ji,
udhishthar or ram hamre beech mai hi hai...koshish je honi chahiye ki esthitiya sudhare....or jis naari ne swam ko pahchaan liya hai....swamsidhha to hai hi
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