सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Wednesday, July 29, 2009

परिणाम !!!!!!!

अपना घर होगा,
अपनी इच्छा ,अपने ख्यालों से
उसे एक अनोखा रंग दूंगी........
ख्वाहिशों की टोकरी में
यह भी एक ख्वाहिश रही नारी की,
पर घर?
वह अपना होता कहाँ है !
पनाह मिलती है,
खाने को दो रोटी
और एक नाम.........
बहुत कम लोगों की पोटली के ख्वाहिश
सच होते हैं
वरना जिधर देखो
ख्वाहिशों के आंसू बहते हैं
जिनको पोछ्नेवाले भी बिरले होते हैं..........
बेटी होने का भय
यूँ ही नहीं प्रबल होता है !
सात फेरों का परिणाम अनिश्चित........
उससे पार पाने के लिए,
अपने पैरों पर खड़ा होना,
भीड़ में गुम हो जाना है,
घर की दीवारों से वह गंध नहीं आती,
जो खनकती चूड़ियों से होती है,
छनकते पायल से होती है
माँ-माँ की गूँज से होती है,
पर...............
रोटी की बराबरी ने
सबकुछ विछिन्न कर दिया !
सहमे,दबे रूप से अलग
जो काया निकली
वह या तो ज्वाला है
या किसी कोने में हतप्रभ आकृति........

Saturday, July 25, 2009

बसंत को आने दो !

औरत -एक माँ ,
संस्कारों की धरती ,
पावन गंगा................
लोग इसे भूल जाते हैं !
एक माँ , काली बन जाती है
जब उसके बच्चे पर कुदृष्टि पड़ती है !
एक औरत ,बन जाती है दुर्गा ,
करती है महिषासुर का वध
जब संस्कारों की धरती पर
पाप के बीज पड़ते हैं !
पावन गंगा बन जाती है विभीषिका
जब उसकी पावनता के उपभोग की अति होती है !
सूखी नज़र आती गंगा काल का शंखनाद बनती है
दिशा बदल - सर्पिणी बन जाती है !
लड़की के जन्म को नकारकर वंश की परम्परा में ख़ुद आग भरते हो ,
जो पुत्र जन्म लेता है लड़की की मौत के बाद ,
वह पुत्र -विनाश का करताल होता है !
जागो,संस्कारों की धरती को बाँझ मत बनाओ...........
गंगा में संस्कारों को मत प्रवाहित
करो विश्वास की देहरी कोअंधकारमय मत करो।
लक्ष्मी को आँगन से निष्कासित मत करो !
नारी का सम्मान करो,
उसकी ममता को मान दो,
अन्धकार से प्रकाश की ओर प्रस्थान करो ,
आँगन में -बसंत को आने दो !

Wednesday, July 22, 2009

स्वयम्बर से वनवास तक सीता ने बहुत सहा था

राखी सावंत ने रचा स्वयम्बर
बनने चली वो सीता
उम्मीद थी उसको
मिलेगे राम
पर शायद ये भूल गयी
राम मिलेगे
तो एक कहीं धोबी भी होगा
और फिर एक वनवास भी होगा

क्यूँ उन प्रथाओं को बारबार
दोहराते हैं जिनको
मिटाने मे लोगो ने युग लगा दिये

स्वयम्बर क्यूँ हो फिर
अग्निपरीक्षा क्यूँ हो फिर
और वनवास भी क्यूँ हो फिर

मत दोहराओ इतिहास
मत बनाओ नारी को फिर
रुढिवादी सोच का दास

सीता से राखी तक सफर तो ठीक था
कहीं कुछ आगे तो बढ़ा था
पर राखी से सीता तक का सफर
एक तरीका होगा
फिर नारी के अस्तित्व को मिटने का

स्वयम्बर से वनवास तक
सीता ने बहुत सहा था
क्या राखी तुम भी सहना चाहोगी

नहीं तो फिर क्यूँ रचा
ये स्वयम्बर
क्यूँ पुरानी परिपाटी
फिर दोहरायी



© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

Sunday, July 19, 2009

ठहरा हुआ इंतजार


एक टुकडा जीवन
लगातार घुमती हुई खामोश बेचैनी
संदिग्ध लम्बा अंतराल
अनुगूंज की घिस चुकि आवाजें
मौन पवित्र प्रार्थनाऐ
सम्पूर्ण अतिंम आवेग
प्रेम की परकटी ऊडान
समुद की बंधुआ कसमसाहट
देर तक जागता ऊनींदा संदेश
तिलमिलाती हुई दारूण प्रतीक्षा
रिश्तों की भारी खुरदुराहट
सपनों का अथाह भारीपन
हँसी की भीतरी लडखडाहट
साथ ही
आहट की इंतहा कंपन भी
क्या कुछ नहीं है यहाँ
इस जीवन में
मगर फिर भी क्या
जरूरी है
हर मील के पत्थर के बाद
वही ठहरा हुआ इंतजार।