सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Wednesday, December 31, 2008

आने वाला पल जाने वाला है

२००९ का आगमन हो रहा हैं
आप सब को नया साल शुभ हो
हमारे देश मे सदा शान्ति रहे और हम हमेशा हर जरुरत पर एक दूसरे के लिये खडे हो
हर आने वाला साल नई उम्मीदे लाता हैं

पर
बीते साल की यादे भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं
यादो को याद रखेगे तो उम्मीदे भी पूरी होगी
क्युकी
आज जो उम्मीद हैं कल वह ही याद होगी
२००८ को याद करते हुए चलिये चलते हैं २००९ मे
सफर यादो से उम्मीदों का

कुछ नया सा

पुराना कुछ बीत रहा

तो क्या

उसे भूलेंगे नही

कुछ अच्छी चीजे होंगी

और कुछ गलतियों की पोटली

सब को बाँध कर सहेज कर

उस में औ नया एहसास भर देंगे

लड़खडाए कदम फिर से चलेंगे

नए उत्साह के साथ

नई उम्मीद के निम् तले

ताकि पिचली कड़वाहट याद कर

कुछ मीठे रिश्ते बन सके

आने वाले नव पर्व पर कुछ नए

ख्वाबो को अंजाम दे सके ........



नारी समूह की और से सभी को नया साल मुबारक

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Wednesday, December 17, 2008

फिर भी तुम्हें, नहीं करूंगी अशक्त!

राष्ट्र प्रेमी जी की ये कविता अतिथि कवि की पोस्ट के तहत पोस्ट की जा रही हैं । आप भी पढ़े और अपने कमेन्ट दे ।
फिर भी तुम्हें, नहीं करूंगी अशक्त!
मैंने समझकर अपना,
अपनत्व के कारण,
की तुम्हारी सेवा,
तुमको खिलाई मेवा,
स्वयं सोकर भूखे पेट,
सावन हो या जेठ,
तुमने की अर्जित शक्ति
मैं करती रही तुम्हारी भक्ति।
मैंने किया प्रेम से समर्पण
सौंपा तन-मन-धन,
तुम बन बैठे मालिक,
मुझे घर में कैद कर,
पकड़ा दिया दर्पण,
मैं सज-धज कर,
करती रही तुम्हारी प्रतीक्षा
तुमने पूरी की,
केवल अपनी इच्छा।
मैंने ही दी तुमको शिक्षा,
सहारा देकर बढ़ाया आगे
तुम फिर भी धोखा दे भागे,
कदम-कदम पर दिया धोखा,
शोषण करने का,
नहीं गवांया कोई मौका।
मैंने साथ दिया कदम-कदम पर,
अपने प्राण देकर भी,
बचाये तुम्हारे प्राण,
तुमने उसे मानकर मेरा आदर्श,
सती प्रथा थोप दी मुझ पर ।
बना लिया मुझको दासी,
वर्जित कर दी मेरे लिए काशी।
लगाते रहे कलंक पर कलंक,
तुम राजा रहे हो या रंक।
दिया निर्वासन दे न पाये आसन।
स्वयं विराजे सिंहासन।
मुझे छोड़ जंगल में,
चलाया शासन।
दिखावा करने को दिया आदर,
पल-पल दी घुटन,
पल-पल किया निरादर।
नर्क का द्वार कहकर,
घृणित बताया।
शुभ कर्मो से किया वंचित,
भोजन,शिक्षा ,स्वास्थ्य,
संपत्ति व मानव अधिकार,
छीन लिया मेरा, सब कुछ संचित।
पैतृक विरासत तुम्हारी,
मैं भटकी दहेज की मारी,
छीन लिया जन्म का अधिकार,
भ्रूण हत्या कर,
छू लिया,
विज्ञान का आकाश।
क्या सोचा है कभी?
मेरे बिन,
बचा पाओगे जमीं?
तड़पायेगी नहीं मेरी कमी?
मेरे बिन जी पाओगे?
अपना अस्तित्व बचाओगे?
हृदय-हीन होकर
कब तक रह पाओगे?
तुम्हारी ही खातिर,
जागना होगा मुझको,
तुम्हारी ही खातिर,
अर्जित करनी होगी शक्ति,
तुम्हें विध्वंस से बचाने की खातिर,
शिक्षा-धन-शक्ति से,
बनूंगी सशक्त!
फिर भी तुम्हें, नहीं करूंगी अशक्त!


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Monday, December 15, 2008

आज का कटु सत्य!

जीवन भर
वह जीती रही
बड़ों से छोटों तक
सबके लिए ।
ढोती रही
घर के दायित्व
नूतन सृष्टि की
उन्हें जीवन औ' नाम दिया
वे एक प्रतीक बन
आज भी
अपने जीवन में खुश हैं।
वह तो जीवन भर
उनके चेहरे की खुशी में ही
जीती रही और खुश रही।
आज अशक्त,वृद्ध औ' असहाय,
कोई भी नहीं,
सबके अपने जीवन हैं
दायित्व हैं,
सब अपने वक्त् के पहले
विदा कह कर चले गए।
एक नारी की
कल्पना
यहाँ भी मुखरित हुई
एकाकीपन के भयावह आतंक से
ख़ुद को बचने के लिए
जड़ लिए शीशे चारों तरफ
कम से कम एकाकी तो नहीं,
अक्ष ही दिखते रहेंगे
अपने अलावा।
अन्तिम क्षणों की वेदना
किस तरह जी और किस तरह पी
वह जो सृष्टि कर्ता थी
अपने जीवन में
अकेले ख़ुद ही
एक कहानी बना गई.
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Tuesday, December 9, 2008

ममता का सन्मान

दिल दहलानेवाला खौफनाक मंज़र
चारों और से गोलियों की बौछार
और बम के धमाको की दहाड़े
इतनी आवाज़ों में भी उसे सुनाई दी
बस नन्हे मोशे की करुन पुकार
जो उसे बुला रहा था

अपने माता पिता के खून से भरा
उस नन्हें मन को पता न था क्या हुआ ?
अपनी जान की परवाह किए बिना
स्टोर रूम से दौड़ी नॅनी सॅम्यूल
गोलिओंसे बचती छुपती
गोद में उठा लिया मोशे
और भागी जान बचा कर
उस वक़्त मौत के ख़ौफ़ से ज़्यादा
ममता का पलड़ा भारी रहा
ऐसी वीरांगना पर गर्व होता है

नन्हे मोशे की नॅनी सॅम्यूल को इस्राईल के सवोच नागरी
पुरस्कार से सम्मानित किया गया
ऐसी निस्वार्थ ममता को ढेरो बधाई नन्हे मोशे के साथ सभी
की दुआए रहेंगी अपने जान की परवाह किए बिना,अपने खुद के
दो बच्चों की सोचे बिना , और इतनी दहशत में खास कर अपना
आपा ना खोकर सूझ बुझ से काम लेना आसान तो नही होता

Sunday, December 7, 2008

तस्वीर का दूसरा रुख

जब ही कोई औरत कपडे उत्तार कर
तस्वीर अपनी खिचाती हैं
सबको नग्नता उसमे नहीं
उसके काम मे नज़र आती हैं
पर उसकी नग्न तस्वीर
ना जाने क्यों ? ऊँचे दामो मे
मन बहलाव के लिये खरीदी जाती हैं ।
अभी ना जाने और कब तक
मन के कसैले पन को
भूलने के लिये लोग तेरी तस्वीर
अपने घरो , कमरों , दीवारों पर टांगेगे
किसी भी उम्र के हो वो
पर औरत की तस्वीर
यानी एक मन बहलाव का साधन
कभी किताबो मे , कभी पोस्टर मे
और कभी ब्लॉग पर घूमती हैं
तस्वीरे औरतो की

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Wednesday, December 3, 2008

लिपस्टिक पाउडर लगाने वाली भी देश चलाने का जज़्बा रखती है

कल महक की ये कविता नारी कविता ब्लॉग पर आयी हैं , सब से निवेदन हैं की जरुर पढे । दोबारा पोस्ट कर रही हूँ ।

कई बार अपनी क्षमता का
एहसास कराने पर भी
बिना ग़लती के अक्सर
उस पर
उंगलिया उठती है ?

बड़े होकर जो भटकते लोग
किसी
में हिम्मत नही उन्हे सुधारे
याद रखना ऐसो को सिर्फ़ एक नारी
एक मा ही तमाचा
रसीद कर सकती है

कुर्सी पर बैठे ढोल पीटने वालो
सुनाई दे
रही है हमारी आवाज़
लिपस्टिक पाउडर लगाने वाली भी
देश चलाने का जज़्बा रखती
है

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Monday, December 1, 2008

शहीदों को शत-शत नमन

डॉ मीना अग्रवाल जी की ये पोस्ट नारी ब्लॉग से मै यहाँ दे रही हूँ
उन शहीदों को शत-मीना नमन जिन्होंने अपना जीवन देश की खातिर न्योछावर कर दिया. उनके इस ऋण को हम कभी नहीं चुका पाएँगे. वो माता-पिता भी धन्य हैं जिन्होंने ऐसे भारत-रत्न को जन्म दिया. माँ के दर्द को तो एक माँ ही समझ सकती है,राजनीति करने वाले उसकी पीड़ा को क्या समझेंगे.माँ तो अब भी इंतज़ार कर रही है अपने लाडले का . और कह रही है-
छ्त के ऊपर विमान गुज़रा है
कल्पनाएँ निहारती हैं तुझे
अजनबी लोग इसमें हैं लेकिन
मेरी आँखें पुकारतीं हैं तुझे !
माम को तो विश्वास ही नहीं है कि उसका बेटा अब उसके आँसू पोंछने के लिए भी नहीं आएगा. उसका मन तो बार-बार यही कहता है-
तपन बढ़ी है तो तन-मन जला है अब के बरस
शरद की रुत में भी सूरज तपा है अब के बरस
चला गया है जो अश्कों को पोंछने वाला
हमारी आँखों में सूखा पड़ा है अब के बरस !
माँ अपनी अंतिम साँस तक बेटे के लिए शुभकामनाएँ ही भेजती रहती है-
वह अपनी आँखों में उमड़ी घटाएँ भेजती है
वह अपने प्यार की ठंडी हवाएँ भेजती है
कभी तो ध्यान के हाथों, कभी पवन के साथ
वह माँ है, बेटे को शुभकामनाएँ भेजती है !
ऐसी माँ को हृदय की संम्पूर्ण भावनाओं के साथ शत-शत नमन .
मीना अग्रवाल
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