सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Thursday, July 3, 2008

निशब्द तुम्हारे शब्दो

शब्दो का खेल था
शब्दो से खेला था
निशब्द तुम्हारे शब्दो ने

शब्दो को मेरे झेला था


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4 comments:

Anonymous said...

bhut badhiya Rachanaji.

Anonymous said...

निशब्द तुम्हारे शब्दो ने
शब्दो को मेरे झेला था

wah wah bahut sundar

रंजू भाटिया said...

निशब्द तुम्हारे शब्दो ने
शब्दो को मेरे झेला था
बहुत खूब

महेन said...

इतने सारे शब्द कि शब्द ही शब्द हो गये चारों ओर।