सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Thursday, July 3, 2008

निशब्द फिर भी शब्द होते है

शब्दो को शब्द खीचते है
शब्दो से शब्द खिचते है
शब्दो मे शब्द होते है
निशब्द फिर भी शब्द होते है


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3 comments:

समयचक्र said...

शब्द को मिलाकर
शब्दों की माला
बनती है
निशब्द देखते ही
फूट पड़ते है .
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद्.

अबरार अहमद said...

अच्छी रचना।

रश्मि प्रभा... said...

mere vichaar me naari wahi nihshabd hai........