सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Sunday, September 19, 2010

कितनी मौत?

वे उसकी मौत पर
 मातम मना रहे थे,
चिल्ला-चिल्ला कर 
सब रो रहे थे.
उनमें वे लोग भी थे
जो जीते जी उसका
जीवन नरक बनाये रहे
औ' देते रहे रोज नई मौत.
आज उसके मुर्दे को
सजा रहे हैं,
साथ ही आंसुओं से 
नहला रहे हैं.
दूर उसकी आत्मा खड़ी
अट्टहास कर रही है -
वाह रे दुनिया वालो,
जिन्दा रहते जब 
हजार मौत मरती रही 
तब कहाँ थे?
पहली बार मैं तब मरी 
जब दहेज़ के लिए
मेरे पिता को कोसा था तुमने
गालियों से  नवाजा था मेरी माँ को,
दूसरी बार उस वक्त मरी
जब बेटी को जन्म था मैंने,
और फिर
बेटी के होने के ताने ने
बार बार मारा मुझे.
तुम्हारी बेटे की चाह ने
कई बार मारा मुझे,
आखिर मेरी बेटियों के साथ 
घर से निकला तुमने.
मेरा सब्र टूट चुका था,
बेटियों को सुलाकर मंदिर में
जल समाधि ले ली मैंने
फिर भी नहीं छोड़ा ,
मेरी लाश भी ले आये.
अब दुनियाँ की नज़रों में
महान बन रहे हो,
फूलों की माला
सजीली साड़ी से मुँह ढक कर
चेहरा छुपा रहे हो.
मेरी इस पूरी मौत पर 
दुनियाँ को तमाशा दिखा रहे हो.

Thursday, September 2, 2010

क्योकि मैने निष्ठा से सिर्फ तुमको चाहा

आये थे कृष्ण एक बार वापस विरंदावन
कहा था उन्होने राधा से
" तुम्हे ही चाहता हूँ मै प्रिये
लौटा हूँ
फिर एक बार पाने के लिये प्यार तुम्हारा "
बोली राधा
" मेरा प्यार तो सदा ही है तुम्हारा
पर क्या तुम रुक्मणी को छोड़ कर आये हों "
बोले कृष्ण " रुक्मणी पत्नी है और राधा तुम प्यार हों मेरा "
" अब वापस तो नहीं जाओगे " राधा का प्रश्न था
" नहीं वापस तो जाना है , संसार का कर्म निभाना है"
बोली फिर राधा " जाओ लॉट जाओ
रुक्मणी को छोड़ कर आते तो मेरा प्यार पाते
इस युग मे तो क्या किसी भी युग मे मुझे तक
वापस आओगे मेरा प्यार पाओगे पर
जैसे मै तुम्हारी हूँ
तुमको भी केवल मेरा बन कर रहना होगा
मुझे प्यार करना और रुक्मणी से विवाह करना
ये पहली गलती थी और
फिर वापस आकर मेरे प्यार की कामना
दूसरी ग़लती है तुम्हारी "
वापस चले गए कृषण
और जाकर अपनी इस यात्रा का विवरण
इतिहास से ही मिटा दिया
क्योकि उन्हें तो भगवान बनना था
मिटा दिया नारी की जागरुकता को
और पुरुष कि कायरता को
उन्होने इतिहास के पन्नो से
क्योकि इतिहास तो हमेशा पुरुष ही लिखते है
फिर एक दिन
फिर मिले वह राधा से
कई युगो बाद
एक मंदिर मे
कहा राधा ने
देखो आज मै भी वहीं स्थापित हूँ
जहां तुम स्थापित हो
पर मेरा नाम तुम्हारे नाम से पहले
लेते है लोग इस युग के
क्योकी उस युग मे मै सही थी
प्रेम एक वक़्त मे केवल एक से करना
हों सकता है फिर दुसरे युग मे
तुम पराई स्त्री के साथ नहीं
रुक्मणी के साथ पूजे जाओ
तुमने जो कुछ पाया
मुझे भी वही मिला
अलग अलग रास्तो से
एक ही जगह पहुंच गए है हम
पर है हम " राधा कृष्ण "
क्योकि मैने निष्ठा से
सिर्फ तुमको चाहा
और
अपना सम्मान मैने

स्वयम अर्जित किया

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शुभ चिन्तक

वो हर इंसान जो
किसी भी नारी को
प्रेरित करता हो
दब्बू बन कर रहने को
और अपने को उस नारी का
शुभ चिन्तक कहता हो
वो एक झूठ को
खुद भी जीता हैं
और दुसरो को भी मजबूर करता हैं
उस झूठ को जीने को