सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Sunday, July 6, 2008

तूफानी नदी


मल्लाह आज आहत है

फिर से कुछ पाने की चाहत है

उसकी वजह है नदी, तूफानी नदी

नदी जो सालों से चुप चाप सी बह रही थी

नदी जो सालों से बोझ को सह रही थी

उसमें उठ आये हैं तूफान

इसी लिये

मल्लाह आज आहत है

फिर से कुछ पाने की चाहत है

उसे चुप चाप बहती नदी में नाव खेने की आदत रही

उसे अपनी मस्ती में लहरों को रोंदने की आदत रही

पर आज नाव डोल रही है क्योंकि

नदी ने चुप्पी तोड़ दी है

उसमें उठ आये हैं तूफान

मल्लाह को समझ नहीं आ रहा है ,क्या जुगत लगाए

तूफानी लहरों पर कैसे काबू पाए

मल्लाह आज आहत है

फिर से कुछ पाने की चाहत है

7 comments:

Anonymous said...

The nice thing with this blog is, its very awsome when it comes to there topic.

रंजू भाटिया said...

नदी जो सालों से चुप चाप सी बह रही थी

नदी जो सालों से बोझ को सह रही थी

उसमें उठ आये हैं तूफान

इसी लिये

मल्लाह आज आहत है

फिर से कुछ पाने की चाहत है

दिल की हलचल और यह लफ्ज़ दोनों का मिलना बहुत खुबसूरत लगा

रश्मि प्रभा... said...

utkrisht.......
naari ko nadi shaant nadi ki tarah paakar sab aasaan tha,ab lahron ka tufaan hai,usme marzi se naaw khena aasaan nahin.......

subhash Bhadauria said...

नदी गिरती समंदर में यही दस्तूर है अब तक.
समंदर खुद चला आया नदी क्यों दूर है अब तक.

उसे मल्लाह की कुव्वत का अंदाज़ा नहीं शायद,
हवाओं के असर में लग रही मगरूर है अब तक.

बयान ज़ारी रहे.अल्लाह करे ज़ोरे कलम और ज़्यादा.
आमीन.

मीनाक्षी said...

प्रकृति में मानवीकरण का यह रूप बहुत ही खूबसूरत.. भाव तो और भी गहरे....

शोभा said...

मल्लाह को समझ नहीं आ रहा है ,क्या जुगत लगाए

तूफानी लहरों पर कैसे काबू पाए

मल्लाह आज आहत है
बहुत खूब। मल्लाह और नदी के प्रतीक सुन्दर बन पड़े हैं ।

Anonymous said...

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