नन्ही आँखे खुली
बिटर बिटर देख मुस्कराई
बढ़ने लगी अमर बेल सी
माँ देख कभी हुई चिंतित
कभी दिल से दुआ निकल आई
लगी सिखाने उसको वही फ़र्ज़ सारे
जो कभी थे उसको अपनी माँ से
देने लगी वही उपदेश जो मिले थे उसको माँ से
सुन के उसकी बेटी मंद मंद मुस्कराई
फ़िक्र करो न माँ तुम मेरी
मैंने अपनी ज़िंदगी
अपने इरादों से है सजाई
भूल गई माँ कि उसकी बेटी
इक्सवी सदी की रहनुमा है
जिसे पता है अपने अधिकारों का
और मंजिल का जानती हर निशाँ है
जोश है उस में ,उमंग है उसमें
हर ज़ंग को जीतने का जज्बा है
अपने पक्के इरादों से
आसमान को छू के आना है
पी के अपने आंसू ख़ुद ही
यह जीवन नही बिताना है
हटा देने हैं अपने जीवन के कांटे
और इस ज़िंदगी के हर लम्हे को
अपने माप दंड से सजाना है !!
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
बिटर बिटर देख मुस्कराई
बढ़ने लगी अमर बेल सी
माँ देख कभी हुई चिंतित
कभी दिल से दुआ निकल आई
लगी सिखाने उसको वही फ़र्ज़ सारे
जो कभी थे उसको अपनी माँ से
देने लगी वही उपदेश जो मिले थे उसको माँ से
सुन के उसकी बेटी मंद मंद मुस्कराई
फ़िक्र करो न माँ तुम मेरी
मैंने अपनी ज़िंदगी
अपने इरादों से है सजाई
भूल गई माँ कि उसकी बेटी
इक्सवी सदी की रहनुमा है
जिसे पता है अपने अधिकारों का
और मंजिल का जानती हर निशाँ है
जोश है उस में ,उमंग है उसमें
हर ज़ंग को जीतने का जज्बा है
अपने पक्के इरादों से
आसमान को छू के आना है
पी के अपने आंसू ख़ुद ही
यह जीवन नही बिताना है
हटा देने हैं अपने जीवन के कांटे
और इस ज़िंदगी के हर लम्हे को
अपने माप दंड से सजाना है !!
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
9 comments:
good job
अच्छा प्रयास
आलोक सिंह "साहिल"
अपना निश्चय,अपना निर्णय
अपने ही अधिकार
स्वयं खोलने होंगे आखिर
खुले हुए जो द्वार
अपने पक्के इरादों से
आसमान को छू के आना है
पी के अपने आंसू ख़ुद ही
यह जीवन नही बिताना है
हटा देने हैं अपने जीवन के कांटे
और इस ज़िंदगी के हर लम्हे को
अपने माप दंड से सजाना है !!
wah wah ranju ji,shabon ke itne khubsurat tee hai,bahut sundar,aasha se bharpur,sach mein aaj ki beti 21 vi sadi ki hai.
रंजना जी
बहुत ही प्यारी रचना है। माँ- बेटी के सम्बन्ध को इतने सुन्दर रूप में प्रस्तुत कियाहै कि आँखें भर आई।
भूल गई माँ कि उसकी बेटी
इक्सवी सदी की रहनुमा है
जिसे पता है अपने अधिकारों का
और मंजिल का जानती हर निशाँ है
जोश है उस में ,उमंग है उसमें
हर ज़ंग को जीतने का जज्बा ह
बधाई स्वीकारें ।
पी के अपने आंसू ख़ुद ही
यह जीवन नही बिताना है
हटा देने हैं अपने जीवन के कांटे
और इस ज़िंदगी के हर लम्हे को
achhi kavita hai
badhaaee
Manvinder
बहुत ही सार्थक कविता.
अपने पक्के इरादों से
आसमान को छू के आना है
पी के अपने आंसू ख़ुद ही
यह जीवन नही बिताना है
हटा देने हैं अपने जीवन के कांटे
और इस ज़िंदगी के हर लम्हे को
अपने माप दंड से सजाना है !!
उत्तम बहुत उत्तम, बेटियां अपने अरमानों को निर्भय होकर पूरे कर सके यही कामना है.
very well said...............
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