सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Saturday, September 26, 2009

मेजर गौतम तुम्हे सलाम

गौतम का नाम मिला हैं तुमको
गौतम बनना होगा तुमको
इंसान नहीं हो तुम
शिला हो , सो भाव ना हो तुममे
तुम हो तो सुरक्षित हम हैं गौतम
तुम जैसी शिलाओ से
सुरक्षित हैं सीमाये
माँ बनने वाली हैं पल्लवी
फिर जन्मेगा एक सुरेश
फिर उसको तुम्हे ही बनाना है मेजर
हम भी पीछे नहीं हैं गौतम
जहां कहोगे शिला बन कर खडे रहेगे
ना सुरेश अकेला था
ना पल्लवी अकेली होगी
तुम हुकुम करना
हम पूरा करेगे
मेजर गौतम तुम्हे सलाम
क्युकी जीते हो जिंदगी की
लड़ाई भी तुम

डॉ अनुराग की पोस्ट देखे सन्दर्भ के लिये
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Wednesday, September 23, 2009

खामोश क्यों हो?

आजकल खामोश क्यों?
कलम
क्या जज्बा संघर्ष का
कुछ टूटने लगा है,
या फिर
अपनी लड़ाई में
बढ़ते कदमों के नीचे
कुछ कांटे बिछाए गए हैं
उनकी चुभन ने
थाम दिए है पग
कुछ इस तरह
रखो कदम
चरमराकर पिस जाएँ
और सिर उठाकर गुजर जाओ
उनके ऊपर से।
कांटे क्या?
लोहे की सलाखें भी
जज्बों के आगे
मुड़कर नतमस्तक हो जायेंगी
कटाक्ष , लांछन
हमेशा श्रृंगार के लिए
तैयार रहे हैं।
जब भी किसी नारी ने
अपनी सीमाओं से परे
कुछ कर के दिखाया है।
अंगुलियाँ उठती ही
रहती हैं।
आखिर कब तक
उठेंगी
अपनी मंजिल की तरफ
चुपचाप चले चलो
जब मिल जायेगी
यही अंगुलियाँ
झुककर
तालियाँ बजायेंगी
लांछन लगाने वाली
जबान
शाबाशी भी देगी।
बस
मेधा , क्षमता, शान्ति से,
जीत लो मन सबका.