सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Monday, February 20, 2012

आवाज टंकार बन चुकी हैं

कल
औरत
एक आवाज थी
दबा दी जाती थी

आज
औरत
एक टंकार हैं

अब लोग दबा रहे हैं
अपने कान
ताकि
टंकार सुनाई ना दे

कल की औरत की आवाज
आज की औरत की
टंकार बन चुकी हैं



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