देखो
अब तुम ये मत कहना
मैं चांद को न देखूं
बरसती चांदनी को निहारना छोड़ दूं
मुझे मत रोको
करने दो मुझे भी मन की
आज का चांद मैं देखूंगी
पूर्णमासी का चांद
बरसती चांदनी मैं निहारूंगी
तुमको गर ये सुहाता है
तो आओ मेरे संग बैठो
लेकिन मुझे मत रोको
करने दो मुझे भी मन की
मुझे मत रोको
मनविंदर भिम्बर
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
5 comments:
बढ़िया।
घुघूती बासूती
सुंदर ..चाँद पर तो सभी का हक है
बहुत प्यारी रचना...
short and sweet ati sundar....
bahut sundar
Post a Comment