क्या शिक्षा से दहेज़-प्रथा मिट गई?
क्या विवाह करने मे जो बातें अहम् थीं
वो मिट गयीं?
क्या अब बहुएं नहीं मरतीं?
क्या बुरे पति से अलग हो गयीं स्त्रियों को
शक की निगाह से नहीं देखा जाता?
क्या आज की शिक्षित पत्नी
बच्चे के लिए पुरूष की यातना नहीं सहती?
क्या बेटी के विवाह में निकृष्ट पिता की छवि से परे
एक माँ ने अपने वजूद को बना लिया है?
अपने-अपने अन्दर देखो,
फिर सत्य की भूमि पर उतरो .......
क्या विवाह करने मे जो बातें अहम् थीं
वो मिट गयीं?
क्या अब बहुएं नहीं मरतीं?
क्या बुरे पति से अलग हो गयीं स्त्रियों को
शक की निगाह से नहीं देखा जाता?
क्या आज की शिक्षित पत्नी
बच्चे के लिए पुरूष की यातना नहीं सहती?
क्या बेटी के विवाह में निकृष्ट पिता की छवि से परे
एक माँ ने अपने वजूद को बना लिया है?
अपने-अपने अन्दर देखो,
फिर सत्य की भूमि पर उतरो .......
संख्या बताओ , फिर उसकी सामाजिक स्थिति
तब कुछ कहो......
यकीनन परिवर्तन का आह्वान तब होगा........
17 comments:
अच्छी कविता है.. !!
sirf Shiksha se kaam nahi chalega, Mulyo per aadharit shiksha se hi manasik parivartan sambhav hai.
Achchi kavita
ye naitik mulya aaj tak dabe hain,
kaun nikaalega?
mansikta jo yugon se hai,wo kab,kaise parivartit hogi? 'do-teen' to pahle bhi apvaad the,aaj bhi hain.......samaaj ko badalne ki baat to sadiyon se ho rahi hai.......
चिट्ठाजगत में शीर्षक को पढ़कर, पढ़ने की जिज्ञासा हुई पर आपने एक विश्लेषण प्रस्तुत किया है वह नारी की ग़लत दशा बता रहा है, भयावहता बता रहा है जबकि आज की नारी कई मायनों में मजबूत आधार को प्राप्त कर चुकी है, आज उसके विचारो और कार्यकलापों को सकारात्मक दिशा मिल रही है। अपवाद तो हर जगह होते है। रही बात प्रताड़ना और दुर्व्यवहार की तो ये तो सभी के साथ हो रहा है स्त्री हो या पुरूष। शुष्क कविता (?) है।
thodee se ashamati ke sath kavita bahut achee lagee
har prashn ka uttar na hai yanee aap kee har baat sahee hai
par parivaratan shuroo huya hai pahale se bahut sudhar hai aur asha karata hoon ye jagrti gaon gaon tak jayegee vikaralata kam huyee hai par ham in dukhon ka ant chahte hain adhee tasalee kafee nahee
Anil
aapne bhi iski vyaapaktaa ko nahin likha..........kahan hai parivartan?
pdhi-likhi ladkiyon ki shhadi mein vilamb ho raha hai,abhibhawak aaj bhi chinta-grasit hain.....kyun?
sirf shiksha se nahin...vichaardhaara ka varivartan bhi jaroori hai,shikshit hote hue bhi mahilayen yahi sab seh rahee hain kyun ki vichaaron se wo ab bhi pita, pati ya putr per nirbhar hain...unse alag wo apne astitva ko swekaar hi nahin pa rahee hain..unko khud mai jab tak vishwaas nahin aayega tab tak shayad badlaav asambhav nahin tau mushkil jaroor hai..bahut achchi abhivyakti hai didi !!
इन बातों का हाल शिक्षा से तो शायद ही हो ,रश्मि जी..ज़रुरत आमूल चूल क्रांति की है .. सामाजिक मान्यताओं के समग्र मंथन की है ...अब तो यह बीमारी शल्य -चिकित्सा की मांग करती है ...मरहम-पट्टी या नुश्कों से कुछ नहीं होने वाला . और विद्रोह की कमान नारी को ही थामनी होगी .. आहुति देनी होगी सुख -सुविधाओं की ...तभी उम्मीद की जा सकती है परिवर्तन की .
"और विद्रोह की कमान नारी को ही थामनी होगी .. आहुति देनी होगी सुख -सुविधाओं की ...तभी उम्मीद की जा सकती है परिवर्तन की ."Dr. RAMJI GIRI
बस यही मूल मन्त्र हैं , भूल जाओ की तुम नारी हो इस लिये कमजोर हो . मत मांगो आज़ादी , क्योकि तुम पैदा आज़ाद ही हुई हो . जियो उस आज़ादी को जिस पेर तुम्हारा अधिकार ५० % का हैं . संरक्षण के लिये नहीं पुरूष का साथ इस लिये लो क्योकि उस साथ की तुमको इच्छा हैं . अपनी सम्पूर्णता ख़ुद मे तलाशो . अपनी मार्ग ख़ुद प्रशस्त करो ," घर " तुम्हारी अन्तिम नियती नहीं हैं तुम्हारा जीवन सार्थक तब होगा जब तुम अपनी जिन्दगी "जियोगी" "काटोगी" नहीं
प्रश्नों को बहुत अच्छी तरह शब्द बढ़ किया हैं कविता बहुत सार्थक हो गयी हैं रश्मि आप की
मैं अकेली शमाँ हूँ ,,,,मुझी से ही रोशनी होगी.... रश्मि जी,,, 'दो-तीन' में परिवर्तन ही समाज में परिवर्तन लाता है... और समाज बदल रहा है..
Rashmiji bhut badhiya.
काले अक्षर का ज्ञान... जीवकोपार्जन का माध्यम मात्र रह गया है..
जो कहा.. सब सच स्वीकारता हूँ.. और नतमस्तक.. हूँ ....
वक्त बदल रहा है ..और बदलना होगा ..
bahut achcha didi.... samaaj ko koun samjhaye....
di fir se samaaj ke ek aur daag ko aapne shbdon main jubaan de di.......ye aisee haquikat hai ki isse koyee achuta nahi hai....aur koyee sweekar bhee nahi karta.....saarthak kavita...
Ehsaas!
bahut hi sahi baat kahi tabhi parivartan hoga sundar
अधिक न लिख कए इतना ही कहूँगा कि
सचिन राव के कथन से पूर्णतया सहमत हूँ ।
नितांत रूखे भाव हैं, इसमें ।
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