हवा का संकेत समझो
औरत का मन समझो
गये वक्त की बातें हैं जब
मेरी पंसद तुम्हारी पसंद थी
मेरी बातें तुम्हारी बातें थी
मेरे गीत तुम्हारे गीत थे
मेरा मौसम तुम्हारा मौसम था
फिर एक दिन
सब कुछ बदल गया
तुमने पसंद जुदा कर ली
बातें परायी कर लीं
गीत नये सजा लिये
मौसम भी बदल गया
अब मैने सुना
तुम्हारी कोई पसंद नहीं रही
तुम्हारी बातें आम हो गई
तुम्हारे गीत रोते हैं
तुम्हारा मौसम भी बेवफा हो गया
उस वक्त तो तुमने मुंह फेरा था
लेकिन
अब इस बार क्या हुआ
क्या तुमसे भी किसी ने मुंह फेर लिया है
देखो
हवा का संकेत समझो
औरत का मन समझो
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सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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9 comments:
bahut sundar .
bhut sundar. jari rhe.
वाह क्या खूब लिखा है-
हवा का संकेत समझो
औरत का मन समझो
बहुत सुन्दर लिखा है। सस्नेह
good one manvinder and nice to see you on this blog
aap logon ka shukriya , aapne meri kavita ke liye samay nikala hai.Shobha ji , rachana ji or sabhi ka shukriya
Manvinder
हवा का संकेत समझो
औरत का मन समझो
मुझे आपकी यह कविता बहुत पसंद आई मनविंदर ..
thanx Ranjana ji, apka comment mere liye kimati hai, janti hai aap?
muje parotsahit karta hai hai apka comment
thanx Ranjana ji, apka comment mere liye kimati hai, janti hai aap?
muje parotsahit karta hai hai apka comment
बहुत भाव भीनी रचना...काश ऐसा हो पाए...
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