मेरे पास भी सपने थे,
थीं रूमानी कल्पनाएँ....
आँखें बंद करके पांव में पाजेब डाल
चलती थी- छुन छुन मैं भी!
होठों पर गीत मचलते थे,
आंखों से ख्वाब टपकते थे!
कई बार घूँघट में चेहरे को छुपाया था
और अंदाज से हटाया था-
मुझे देख आइना भी मुस्कुराया था.......
दिल धड़का था ,
जब वो आया था.....
पल-पल की धड़कनें ,
कानों में गूंजें थे -
दिल डर गया !
आनेवाला चिल्लाया 'वो हस्र करूँगा कि सारी दुनिया देखेगी'
आंखों से दहशत आंसू बन टपके थे!
'क्यूँ?'
एक प्रश्न बन होठों पे उतरा था.....
पर हर प्रश्न पर
दाता ने मारा था!
दाता?!?
कहता था,
'मेरे टुकडों पर पलती है ,
और जुबान खोलती है....'
...........
माँ को याद करने की मनाही थी,
भाई-बहन के नाम पर बंदिशें थीं
बाकि रिश्ते-शक के दायरे में रहे....
परे इसके-
उसका भाई , मेरा पीछा करता रहा
अपनी वहशी आंखों से मुझे घूरता रहा!
अपने दाता को बताया तो ,
खाना हुआ बंद और सज़ा सुनाई गई,
वहशी से माफ़ी मांगे जाने पर ही टुकडा नसीब होगा.....
आठ महीने के गर्भ में ,
भूख से निजात पाने को,
नई कोपल की खातिर-
मैंने मांगी थी माफ़ी!
जब गोद में आई खुशियाँ,
उसको दाता ने छिना था!
और हसरत देख आंखों में मेरी-
जान की हद तक मारा था!
बच्चे को ख़ुद से दूर देख,
मैंने काल का रूप लिया...........
एक छवि की बाँध से बाहर आने में
कई साल लगे!
पर जब निकली बाहर तो,
सर उठाकर ही चली,
जिस पहचान से दूर रही थी,
वो पहचान फिर मुझे मिली.......
जिसने भी ऊँगली उठाई,
उसके घर कोहराम हुआ,
माँ की रक्षा में ख़ुद शिव ने,
मेरे घर में वास लिया.......
तुम मानो या न मानो,
है ये बिल्कुल सत्य कथा!!!!!!!!!!!!!!!!!
एक-एक क़दमों के निशाँ,
कहेंगे मेरी आत्मकथा............
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Wednesday, July 16, 2008
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13 comments:
bahut kathin samy ka bahut marmik sashakt varnan pooree jeevan yatra hai kavita bahut achha
ANil
rashmi ji, kitana dard hai is mai. samjh nahi pa rahi hu ki kya commentm karu. sach bada dard hua hoga ise likhate wakat.
Manvinder
->और कौन है जो समझेगा इस दर्द को
सब मोन हैं खुद ही जागना होगा नारी को
कौन बदलेगा कौन करेगा कौन है जो साथ देगा
जिसे कहा मैंने दाता वोही मेरे प्राण आज लेगा
भूख तरसूं या ममता देने को हूं में व्याकुल
सोती इस दुनिया में जागना मुझी को होगा
झुकी बहुत अब सर उठा कर मुझे जीना होगा
ये कुछ पंक्तियाँ हैं जो आपकी भावनाओं में छिपे नारी बलिदान और और उसकी असीमित शक्ति को समर्पित हैं .........
हर घर में अब शिव वास करे यही कामना करता हूं
di, kya hai ye..........kahan se le aayee tum itna dard, tumhari kavita main ye dard, mujhe nahi suhata....!!beshak sarthakta se bahut karib hai, beshak ye kisi ki aatmkatha ho sakti hai...
tum to bas aashawadi kavi bano jo sapno ko bunta ho, jo pariyon ki katha sunata ho, jo pathak ko khushi deta ho, jo sirf ye dikhata ho ki abhi bhi duniya hamari hai........hai na!!
waise har din tumhari kavita mere liye ek naya sandesh deti hai, ek naya viswas paida karti hai, aur main sochta hoon, jab di ne likha to main kyon nahi.......beshak wo din 10-15 varsho baad aayega........
lagta hai mera naam bhi kabhi na kabhi swarn akshar main jarur likha jayega......pata hai kyon
log mujhe yaad karenge.......kahenge pata hai ye mukesh kaun hai..........ye hai rashmi ka bhai..:P
tumhara chhota bhai
mukesh
बहुत मार्मिक लिखा है आपने ..सच ऐसा ही दर्दनाक होता है .
bhut dard hai rachana me. bhut badhiya.
देश की नारी वर्ग का एक बड़ा तबका इस नारकीय घरेलू हिंसा की पीडा से अक्सर रू-बरू होता है.. उसमे से आज भी विद्रोह कर सकने की हिम्मत बहुत कम ही जुटा पाती है...
आपकी बात उनको शक्ति और सद्मार्ग दिखाए ...
didi mai samajh gayee hoon isliye kuch nahin keh pa rahee hoon...per is dard ko bahut achche se mehsoos kar rahee hoon...ek ek shabd mann ko bedh raha hai..
बहुत दर्दनाक, पर खुशी इस बात की है कि अंतत: शिव का वास हुआ मां के घर में
nishabd hun
दर्द नाक और कटु सत्य !
दिल को गहरे तक मर्माहत कर जाने वाला कटु सत्य और रचना |
satya ko saamne lana aasaan nahi hota,par maine jaana jeet satya ki hi hoti hai,bhale paw lahuluhaan ho,
samaaj,pariwaar tabhi saath hote hain,jab hum apne saath hote hain
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