कुश जी की कलम से कविता पढ़कर मन मे उथल पुथल इस रूप में बाहर आई...
गन्दे लोगों से छुड़वाओ... पापा मुझको तुम ले जाओ...
खत पढ़कर घर भर में छाया था मातम....
पापा की आँखों से आँसू रुकते न थे....
माँ की ममता माँ को जीते जी मार रही थी ....
मैं दीदी का खत पढ़कर जड़ सी बैठी थी...
मन में धधक रही थी आग, आँखें थी जलती...
क्यों मेरी दीदी इतनी लाचार हुई...
क्यों अपने बल पर लड़ न पाई...
माँ ने हम दोनों बहनों को प्यार दिया ..
पापा ने बेटा मान हमें दुलार दिया....
जूडो कराटे की क्लास में दीदी अव्वल आती...
रोती जब दीदी से हर वार में हार मैं पाती...
मेरी दीदी इतनी कमज़ोर हुई क्यों....
सोच सोच मेरी बुद्धि थक जाती...
छोटी बहन नहीं दीदी की दीदी बन बैठी...
दीदी को खत लिखने मैं बैठी..
"मेरी प्यारी दीदी.... पहले तो आँसू पोछों...
फिर छोटी की खातिर लम्बी साँस तो खीचों..
फिर सोचो...
क्या तुम मेरी दीदी हो...
जो कहती थी..
अत्याचार जो सहता , वह भी पापी कहलाता...
फिर तुम.....
अत्याचार सहोगी और मरोगी...
क्यों .... क्यों तुम कमज़ोर हुई...
क्यों... अत्याचारी को बल देती हो....
क्यों.... क्यों... क्यों...
क्यों का उत्तर नहीं तुम्हारे पास...
क्यों का उत्तर तो है मेरे पास....
तोड़ दो सारे बन्धन और अपने बल पर मुक्ति पाओ..
अपने मन की आवाज़ सुनो फिर राह चुनो नई तुम..
ऊँची शिक्षा जो पाई उसके अर्थ ढूँढ कर लाओ ..
अपने पैरों पर खड़े होकर दिखलाओ तुम ....
दीदी बनके खत लिखा है दीदी तुमको...
छोटी जानके क्षमा करो तुम मुझको....
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Saturday, July 5, 2008
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4 comments:
अत्याचार जो सहता , वह भी पापी कहलाता...
फिर तुम.....
अत्याचार सहोगी और मरोगी...
क्यों .... क्यों तुम कमज़ोर हुई...
क्यों... अत्याचारी को बल देती हो.
बहुत ही भावना मे बह कर लिखी हुई कविता हैं मीनू , बस ऐसे ही प्ररेणा दायक माँ बहिन हो तो आगे आने वाली हर लड़की का रास्ता सरल होगा
sar jhukayaa hai tumko,
sach mano,
maine bhi anyaye sahne ko paap maana hai,
kiya virodh apne bal par,
tum sahi ho,sahi ho,sahi ho..........
"मेरी प्यारी दीदी.... पहले तो आँसू पोछों...
फिर छोटी की खातिर लम्बी साँस तो खीचों..
फिर सोचो...
क्या तुम मेरी दीदी हो...
जो कहती थी..
अत्याचार जो सहता , वह भी पापी कहलाता...
फिर तुम.....
अत्याचार सहोगी और मरोगी...
क्यों .... क्यों तुम कमज़ोर हुई...
क्यों... अत्याचारी को बल देती हो....
क्यों.... क्यों... क्यों...
ek nai roshni ka sanchaar kar rahi hai je panktiyan. bhut khub hai apka andaaj
Manvinder
रचनाजी, सही कहा किसी न किसी रूप में प्रेरणा पाकर रास्ता सरल हो जाए तो जीवन आसान हो जाए.
रश्मिजी, काश सभी की भावना आप जैसी हो जाए..
मनविन्दरजी, अगर एक भी रोश्नी पाकर अपने जीवन को आसान बना ले तो लेखन सफल हो जाए..
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