पिता से बना जब रिश्ता बेटी तुम कहलाई
भाई से बना जब रिश्ता भगिनी तुम कहलाई
पति से बना जब रिश्ता पत्नी तुम कहलाई
बेटे से बना जब रिश्ता माँ तुम कहलाई
अपने से बना जब रिश्ता सम्पूर्ण नारी तुम कहलाई
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" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की और लिखा अपने मन मे बसी स्वतंत्रता को "
4 comments:
ek pure jeewan ko darsha rahi hai apki panktiya. bahut sunder
Manvinder
sau pratishat sahi baat kahi
prashansniye.......
बहुत सुन्दर लिखा है रचना जी। नारी की पूर्णता इसी में है कि अपने को पहचाने और अपनी अलग पहचान बनाए।
नारी अस्तित्व को दर्शाती एक पूर्ण कविता है यह
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