सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Wednesday, March 28, 2012

क्या कोई नाम भी दिया जा सकता हैं इस कविता को ???

दस्तक ब्लॉग पर एक कविता देखी 

कविता का शीर्षक नहीं हैं शायद ऐसी कविताओं का शीर्षक होता ही ना हो , कविता ईशा की हैं
क्या क्या नहीं कह रही हैं . मुझे बहुत कुछ सुनाई दिया आप को भी दिया हो तो कमेन्ट मे बताये . ईशा भी जानना चाहती होगी .
क्या कोई नाम भी दिया जा सकता हैं इस कविता को ???



नारी - नाम है सम्मान का, या
         समाज ने कोई  ढोंग रचा है.


बेटी - नाम है दुलार का, या
         समाज के लिए सजा है.


पत्नी - किसी पुरुष की सगी है, या
           यह रिश्ता भी एक ठगी है.


माँ -  ममता की परिभाषा है, या
        होना इसका भी एक निराशा है.


नारी - नाम है स्वाभिमान का, या
          इसका हर रिश्ता है अपमान का.
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Friday, March 23, 2012

फिर लाशों का तर्पण कौन करे ?

जी आपके स्नेह से अभिभूत हूँ किन्ही कारणों से मैंने सभी साझा ब्लोग्स छोड़ दिए हैं और सबसे खुद को अलग कर लिया है ये मेरे निजी कारण हैं ........अब नारी ब्लॉग पर भी मैं नहीं हूँ इसलिए वहाँ पोस्ट तो नहीं कर सकती हाँ आपको भेज सकती हूँ आप यदि चाहें तो मेरे नाम के साथ वहाँ इसे लगा सकती हैं .........उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेंगी .

फिर लाशों का तर्पण कौन करे ?


यहाँ ज़िन्दा कौन है

ना आशा ना विमला

ना लता ना हया

देखा है कभी

चलती फिरती लाशों का शहर

इस शहर के दरो दीवार तो होते हैं

मगर कोई छत नहीं होती

तो घर कैसे और कहाँ बने

सिर्फ लाशों की

खरीद फरोख्त होती है

जहाँ लाशों से ही

सम्भोग होता है

और खुद को वो

मर्द समझता है जो शायद

सबसे बड़ा नामर्द होता है

ज़िन्दा ना शरीर होता है

ना आत्मा और ना ज़मीर

रोज़ अपनी लाश को

खुद कंधे पर ढोकर

बिस्तर की सलवटें

बनाई जाती हैं

मगर लाशें कब बोली हैं

चिता में जलना ही

उनकी नियति होती है

कुछ लाशें उम्र भर होम होती हैं

मगर राख़ नहीं

देखा है कभी

लाशों को लाशों पर रोते

यहाँ तो लाशों को

मुखाग्नि भी नहीं दी जाती

फिर लाशों का तर्पण कौन करे ?



सादर आभार

वन्दना गुप्ता

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