सदियों से मानसिक रूप से परतंत्र
नही उबर पाती हैं
नही उबर पाती हैं
अपनी इस मानसिकता से
जो अधिकार हक़ से उसके हैं
उनको पाने के लिये छल करती हैं
सदियों से छल ही तो करती आयी हैं
पर ये भूल जाती हैं कि हर छल मे
छली वही जाती हैं
सोचती हैं पति के अहम् को बढ़ावा दे दूँ
उससे डर कर रहने का नाटक कर लूँ
क्या मेरा जायेगा , जीवन मेरा तो
सुख सुविधा से कट जायेगा
कभी क्यो जीवन जीने का नहीं सोचती
त्रिया चरित्र का लाछन ले कर
क्या कभी जीवन जीने का सुख
वो पाएगी या एक और
औरतो की पीढी
बिना अधिकार अपने भोगे
दुनिया से जीवन काट कर चली जायेगी
जो अधिकार हक़ से उसके हैं
उनको पाने के लिये छल करती हैं
सदियों से छल ही तो करती आयी हैं
पर ये भूल जाती हैं कि हर छल मे
छली वही जाती हैं
सोचती हैं पति के अहम् को बढ़ावा दे दूँ
उससे डर कर रहने का नाटक कर लूँ
क्या मेरा जायेगा , जीवन मेरा तो
सुख सुविधा से कट जायेगा
कभी क्यो जीवन जीने का नहीं सोचती
त्रिया चरित्र का लाछन ले कर
क्या कभी जीवन जीने का सुख
वो पाएगी या एक और
औरतो की पीढी
बिना अधिकार अपने भोगे
दुनिया से जीवन काट कर चली जायेगी
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
1 comment:
Rachana ji. ek khaas kisam di pidi sach mai khadi ho chuki hai, apki parstuti achhi hai.es ko jaari rakhain
Manvinder
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