सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Sunday, July 13, 2008

हवा का संकेत समझो

हवा का संकेत समझो
औरत का मन समझो
गये वक्त की बातें हैं जब
मेरी पंसद तुम्हारी पसंद थी
मेरी बातें तुम्हारी बातें थी
मेरे गीत तुम्हारे गीत थे
मेरा मौसम तुम्हारा मौसम था
फिर एक दिन
सब कुछ बदल गया
तुमने पसंद जुदा कर ली
बातें परायी कर लीं
गीत नये सजा लिये
मौसम भी बदल गया
अब मैने सुना
तुम्हारी कोई पसंद नहीं रही
तुम्हारी बातें आम हो गई
तुम्हारे गीत रोते हैं
तुम्हारा मौसम भी बेवफा हो गया
उस वक्त तो तुमने मुंह फेरा था
लेकिन
अब इस बार क्या हुआ
क्या तुमसे भी किसी ने मुंह फेर लिया है
देखो
हवा का संकेत समझो
औरत का मन समझो
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

9 comments:

समयचक्र said...

bahut sundar .

Anonymous said...

bhut sundar. jari rhe.

शोभा said...

वाह क्या खूब लिखा है-
हवा का संकेत समझो
औरत का मन समझो
बहुत सुन्दर लिखा है। सस्नेह

Anonymous said...

good one manvinder and nice to see you on this blog

Manvinder said...

aap logon ka shukriya , aapne meri kavita ke liye samay nikala hai.Shobha ji , rachana ji or sabhi ka shukriya
Manvinder

रंजू भाटिया said...

हवा का संकेत समझो
औरत का मन समझो

मुझे आपकी यह कविता बहुत पसंद आई मनविंदर ..

Manvinder said...

thanx Ranjana ji, apka comment mere liye kimati hai, janti hai aap?
muje parotsahit karta hai hai apka comment

Manvinder said...

thanx Ranjana ji, apka comment mere liye kimati hai, janti hai aap?
muje parotsahit karta hai hai apka comment

मीनाक्षी said...

बहुत भाव भीनी रचना...काश ऐसा हो पाए...