"कोख से
(परिचय - एक गर्भवती महिला अल्ट्रासोनोग्राफी सेंटर में भ्रूण के लिंग का पता कराने के लिए जाती है। जब पेट पर लेप लगाने के बाद अल्ट्रासाउंड का संवेदी संसूचक घुमाया जाता है, तो सामने लगे मानिटर पर एक दृष्य उभरना शुरू होता है। इससे पहले कि मानिटर में दृष्य साफ साफ उभरे, एक आवाज गूंजती है। और यही आवाज मेरी कविता है - 'कोख से' । आइये सुनते हैं यह आवाज -
माँ सुनी मैने एक कहानी !
सच्ची है याँ झूठी मनगढ़ंत कहानी ?
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बेटी का जन्म घर मे मायूसी लाता,
खुशियों का पल मातम बन जाता,
बधाई का एक न स्वर लहराता,
ढ़ोल मंजीरे पर न कोई सुर सजाता ! माँ....
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न बंटते लड्डू, खील, मिठाई, बताशे,
न पकते मालपुए, खीर, पंराठे,
न चौखट पर होते कोई खेल तमाशे,
न ही अंगने में कोई ठुमक नाचते। माँ....
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न दान गरीबों को मिल पाता,
न भूखों को कोई अन्न खिलाता,
न मंदिर कोई प्रसाद बांटता,
न ईश को कोई मन्नत चढ़ाता ! माँ.....
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माँ को कोसा बेटी के लिए जाता,
तानों से जीना मुश्किल हो जाता,
बेटी की मौत का प्रयत्न भी होता,
गला घोंटकर यां जिंदा दफ़ना दिया जाता ! माँ....
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दुर्भाग्य से यदि फ़िर भी बच जाए,
ताउम्र बस सेवा धर्म निभाए,
चूल्हा, चौंका, बर्तन ही संभाले जाए,
जीवन का कोई सुख भोग न पाए ! माँ.....
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पिता से हर पल सहमी रहती,
भाईयों की जरूरत पूरी करती,
घर का हर कोना संवारती,
अपने लिए एक पल न पाती ! माँ....
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भाई, बहन का अंतर उसे सालता,
हर वस्तु पर अधिकार भाई जमाता,
माँ, बाप का प्यार सिर्फ़ भाई पाता,
उसके हिस्से घर का पूरा काम ही आता ! माँ....
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किताबें, कपड़े, भोजन, खिलौने,
सब भाई की चाहत के नमूने,
माँ भी खिलाती पुत्र को प्रथम निवाला,
उसके हिस्से आता केवल बचा निवाला ! माँ....
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बेटी को मिलते केवल ब्याख्यान,
बलिदान करने की प्रेरणा, लाभ, गुणगान,
आहत होते हर पल उसके अरमान,
बेटी को दुत्कार, मिले बेटे को मान ! माँ....
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शिक्षा का अधिकार पुत्र को हो,
बेटी तो केवल पराया धन हो,
इस बेटी पर फ़िर खर्चा क्यों हो ?
पढ़ाने की दरकार भला क्यों हो ? माँ....
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आज विज्ञान ने आसान किया है,
अल्ट्रा-सोनोग्राफ़ी यंत्र दिया है,
बेटी से छुट्कारा आसान किया है,
कोख में ही भ्रूण हत्या सरल किया है ! माँ...
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माँ तू भी कभी बेटी होगी,
इन हालातों से गुजरी होगी,
आज इसीलिए आयी क्या टेस्ट कराने ?
मुझको इन हालातों से बचाने ! माँ....
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माँ यदि सच है थोड़ी भी यह कहानी,
पूर्व, बने मेरा जीवन भी एक कहानी,
देती हूँ आवाज कोख से, करो खत्म कहानी,
करो समाप्त मुझे, न दो मुझे जिंदगानी।
करो समाप्त मुझे, न दो मुझे जिंदगानी।
करो समाप्त मुझे, न दो मुझे जिंदगानी।
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कवि कुलवंत सिंह
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