सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Monday, June 2, 2008

अक्स

सुबह के उजास में
सांझ के काजल में
देखा है बस तुम्हे
ख्यालों के साए में
भोर की गुनगुनी धूप में
संध्या की कजरारी छावं में
जिन्दगी के हर मोड़ पर
बस तुम्हारी मुस्कराहट है
ख्वाबों की तस्वीरों में
हर पल तुम्हारा अक्स है
गुजरे वक्त की सिलवट में
बस तुम्हारी आहटें हैं

---नीलिमा गर्ग