ज़िंदगी तो मिल जाती हैं सबको चाही या अनचाही
बीच में मिल जाते हैं ना जाने कितने अनजान राही
बिताते हैं कुछ पल वो ज़िंदगी के साथ साथ
कुछ मीठे- कड़वे पलो की सोगाते दे जाते हैं
यह ज़िंदगी का खेल बस वक़्त के साथ यूँ ही चलता जाता है
बचपन जवानी में ,जवानी को बुढ़ापे में तब्दील कर जाता है
सब अपने सुख दुख समेटे इस ज़िंदगी को बस जीते जाते हैं
बह जाते हैं यह रेत से गीले पल फिर कब हाथ आते हैं !!
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
बीच में मिल जाते हैं ना जाने कितने अनजान राही
बिताते हैं कुछ पल वो ज़िंदगी के साथ साथ
कुछ मीठे- कड़वे पलो की सोगाते दे जाते हैं
यह ज़िंदगी का खेल बस वक़्त के साथ यूँ ही चलता जाता है
बचपन जवानी में ,जवानी को बुढ़ापे में तब्दील कर जाता है
सब अपने सुख दुख समेटे इस ज़िंदगी को बस जीते जाते हैं
बह जाते हैं यह रेत से गीले पल फिर कब हाथ आते हैं !!
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
7 comments:
achchi kavitaa
Ek achchhi kavita ka rasaswad karaya aapane!
sweet poem...
रंजू जी
बह जाते हैं यह रेत से गीले पल फिर कब हाथ आते हैं !!
बिल्कुल सच बयां किया है आपने ज़िंदगी का...बेहतरीन शब्द.
नीरज
बहुत ही सुंदर,भावपूर्ण, जिंदगी की सच्चाई से दो चार कराती रचना,बधाई.
zindagi se milati bahut sundar kavita
सब अपने सुख दुख समेटे इस ज़िंदगी को बस जीते जाते हैं
बह जाते हैं यह रेत से गीले पल फिर कब हाथ आते हैं !!
सही भाव....जो दिल से उतारते हैं,दिल तक जाते हैं.
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