मेरे गीतो में जो तुम्हे आग दिखाई देती है
यह वह सच जो अपनी ज़ुबान ख़ुद ही कहती है
दर्द जितने मिले हैं मुझ को इस बेदर्द ज़माने से
आज मेरे गीतो में बस उनकी ताप दिखाई देती है
जब भी कुरेद देता है कोई मेरे जख्मो को
एक झंकार ,लय .आह इनमें दिखाई देती है
कभी तो बदलेगा इस दिखावटी ज़माने का मिजाज़ भी
मेरे गीतो में वही एक मधुर आस दिखाई देती है
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7 comments:
कभी तो बदलेगा इस दिखावटी ज़माने का मिजाज़ भी
मेरे गीतो में वही एक मधुर आस दिखाई देती है
bahut sundar ranju ji, snageet divas par geeton ke whsaas se bhari khubsurat rachana,bahut badhai
har pankti sashakt hai,
andar ke tej se projjwalit hai.......
awashya badlegi anginat soch in panktiyon se.
जब भी कुरेद देता है कोई मेरे जख्मो को
एक झंकार ,लय .आह इनमें दिखाई देती है
हम बस इतना कहेगे मोहतरमा........
माना की एक तल्ख़ हकीकत है जिंदगी
दिलकश फरेबो से मगर तुझे आजमायेगी ....
Bahut badhiya salaah.Ek din log jarur sachet honge.
बहुत अच्छी रचना !इस बेदर्द ज़माने से मिले दर्द को बखूबी व्यक्त किया गया है !बहुत बहुत धन्यवाद !
वाह रंजू जी...बेहद खूबसूरत रचना...दिल के दर्द का बड़ी कलात्मकता से एहसास करवाया है...
नीरज
वाह रंजू जी बहुत अच्छा लगा और
कभी तो बदलेगा इस दिखावटी ज़माने का मिजाज़ भी
मेरे गीतो में वही एक मधुर आस दिखाई देती
है
बहुत अच्छा धन्यवाद आपके इन सुविचारों के लिए
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