कौन सा हैं असली रूप
दर्पण के सामने
खडे हो कर
देखा हैं कई बार ।
स्नानगृह का रूप ,
शयनकक्ष का रूप.
सभामंच का रूप ,
कार्यालय का रूप ,
सड़क का रूप ,
अस्पताल का रूप ,
मन्दिर का रूप ,
एक ही चेहरा
दिखता हैं दर्पण में
पर रूप
हर बार बदल जाता हैं ।
भीतर का निराकार
बाहर का साकार
चेहरे के हर कोण में
परिवर्तन बनकर
दिखता हैं दर्पण में
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Thursday, June 12, 2008
असली रूप
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4 comments:
बहुत ही सुंदर और सशक्त अभिव्यक्ति.
बेहतरीन लेखन.
bahut sundar,sach har baar ek alag roop.
भीतर का निराकार
बाहर का साकार
चेहरे के हर कोण में
परिवर्तन बनकर
दिखता हैं दर्पण में
बहुत ही सच्चा लिखा है आपने
bahut khoob likha hai.zindagi ki haqeeqat hai yeh.darpan hamare asli roop ka aaina hota hai jo wastav mein man ka darpan hota hai na ki sharir ka.hamare ar anchuye pahlu ka darpan.
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