सुबह के उजास में
सांझ के काजल में
देखा है बस तुम्हे
ख्यालों के साए में
भोर की गुनगुनी धूप में
संध्या की कजरारी छावं में
जिन्दगी के हर मोड़ पर
बस तुम्हारी मुस्कराहट है
ख्वाबों की तस्वीरों में
हर पल तुम्हारा अक्स है
गुजरे वक्त की सिलवट में
बस तुम्हारी आहटें हैं
---नीलिमा गर्ग
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Monday, June 2, 2008
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3 comments:
मोहब्बत समझी नहीं की जाती है
ज़िन्दगी पलों मे जीं जाती है
अच्छी लगी आपकी यह रचना नीलिमा जी
bahut sundar komal bhav,badhai
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