साहिल पर खड़े हुए
सरकती रेत क़दमों के नीचे से
जैसे वक्त सरकता जाए मुट्ठी से
दूर क्षितिज पर एक सितारा
आसमान पर टंके ये लम्हे ,पलछिन
यही सच है शेष है भ्रम --
गुजरता वक्त जिन्दगी का सच है
प्रतिपल बढ़ते कदम ,
एक अनजान डगर पर
जिसके आगे पूर्णविराम
चिरनिद्रा चिर्विश्राम !!!
--नीलिमा गर्ग
सरकती रेत क़दमों के नीचे से
जैसे वक्त सरकता जाए मुट्ठी से
दूर क्षितिज पर एक सितारा
आसमान पर टंके ये लम्हे ,पलछिन
यही सच है शेष है भ्रम --
गुजरता वक्त जिन्दगी का सच है
प्रतिपल बढ़ते कदम ,
एक अनजान डगर पर
जिसके आगे पूर्णविराम
चिरनिद्रा चिर्विश्राम !!!
--नीलिमा गर्ग
3 comments:
गुजरता वक्त जिन्दगी का सच है ...
बस यही ज़िंदगी का सच है ..बहुत सुंदर कविता लगी मुझे यह
सच कहा आपने ....बस यही एक सच है....
bilkul sahi kaha,gujarta waqt hi sach hai jeevan ka.
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