सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Wednesday, June 18, 2008

काई

रिश्तों के ऊपर
जब काई आ जाती है
रिश्ते सड़ जाते है
लोग फिर झूठ बोल कर
खुद को बचाते है
और भ्रम मे रहते है
की उन्होने रिश्तों को
बचा लिया
रिश्ता तो कब का
दम तोड़ चुका होता है
काई के नीचे
झूठ और अविश्वाश कि गंध से
काई के नीचे

अच्छे से अच्छा भी
हो जाता है बुरा

ये कविता अपने ओरिजनल फॉर्म मे इंग्लिश मे है और काफी लंबी हैं ।

© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

4 comments:

Anonymous said...

bilkul sahi baat,kai ke niche achhe se achha bhi bura ban jata hai bahut khub.

रंजू भाटिया said...

जब काई आ जाती है
रिश्ते सड़ जाते है
लोग फिर झूठ बोल कर
खुद को बचाते है

बहुत सही और सुंदर लिखा है ..लम्बी है तो कोई बात नही आप पूरी कविता पोस्ट करे ..पढ़ना अच्छा लगेगा इस को

vandana gupta said...

really jab rshton par kai jamne lagti hai tab rishte khatam ho jate hain sirf dikhawa hota hai.rishton ki mahak khatm ho jati hai.aur aaj har rishta ek kai ke neeche jama hai jiski sadan ab bardast nhi hoti aur hum use bardasht karne k liye majboor hote hain.

रश्मि प्रभा... said...

sach kaha......
kaash kaai na jame rishton par,
kuch to badle is rachna se