आज फिर उसके अंतर्मन में चोट लगी ,
घायल दिल कराह उठा !
एक ज़ोर की टीस उठी ,
तिलमिला कर रह गया सब कुछ !
विषाद के आंसू बह चले !
एक अजीब सी
बेचैनी थी ,
उसकी बेबसी की !
मन तड़प रहा था !
व्याकुलता स्पष्ट थी ,
उसके चेहरे पर !
कुछ कहना चाहती थी ,
कुछ करना चाहती थी !
मगर सब व्यर्थ था ,
इस पुरूष प्रधान समाज में
वह एक अबला नारी थी !
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
12 comments:
नारी नहीं है अबला, वह तो शक्ति का स्रोत है। बस उसे खुद को पहचानने की जरूरत है।
मुश्किलें अभी भी हैं पर अब जागना ही नारी के हित में है ..
कविता सुंदर हैं पर आज की नारी का मन स्पंदन इस कविता से नहीं जुड़ता हैं । अबला से सबला का सफर नारी की उपलब्धियों से भरा हैं और समाज को पुरूष प्रधान मानना छोड़ दे बस रास्ते ख़ुद बा ख़ुद खुल जायेगे । विद्रोह पुरूष से नहीं समाज कि कुरीतियों से करे जो नारी पुरूष को एक अलग लाइन मे खडा करती हैं ।
नारी अबला नही हैं, उसे अबला समाज के ठेकेदारों व कुछ हद तक कविओं ने बनाया है. नारी ही शक्ति है स्वयं की ही नहीं नर की भी. नारी को इन नारीवादी कवियों से बचाने की जरूरत है जो कदम-कदम पर उसे अबला घोषित करके कमजोर करने के प्रयत्न करते हैं.
jo dard milta hai usse kamjori na samajhkar takat samajhe aur ladhe,rachana ji se sehmat hai.
दिनेश जी आपने ठीक कहा की नारी शक्ति का स्त्रोत है .उसे खुद को पहचानने की ज़रुरत है !लेकिन मैं यही कहूँगी की पुरुष वर्ग अभी उसे पहचानने में असमर्थ है !रंजना जी अब जागना ही सच में नारी के हित में है !रचना जी आपका सन्देश जायज है की विद्रोह पुरुष से नहीं समाज की कुरीतियों से करना चाहिए !परन्तु समाज की कुरातियाँ भी पुरुष वर्ग की देन हैं !राष्ट्रप्रेमी जी मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूँ की नारी को नारीवाद कवियों से बचने की ज़रुरत है जो उसे हर कदम पर अबला घोषित करके कमज़ोर करने के प्रयत्न करते हैं !आज १०० में से ८० %नारी पुरुषों द्वारा प्रताडित की जाती है !निम्न वर्ग मैं तो नारी की स्थिति बहुत ही दयनीय है वह सुबह से शाम तक काम में पिलती रहती है और उसका पति घर आते ही उसको पैसे के लिए यातना देता है !माध्यम वर्ग और उच्च वर्ग की भी महिलाएं पुरुषों से कन्धा मिलाने की बात तो करती हैं परन्तु रोज़ अखबारों में नारी द्वारा की गयी खुदकुशी कुछ और ही बयान करती हैं !नारी वाद कवियों की बुलंद आवाज़ ही नारी को सबला बनाने में मददगार साबित होगी !सिर्फ १य २ % नारियों के आत्मनिर्भर या प्रतिष्ठित हो जाने से नारी को सबला मान लेना ठीक नहीं होगा ! नारी खुद को पहचानती है ,ज़रुरत है पुरुषों को की वो नारी को सम्मान दें उसे कमज़ोर समझने का प्रयत्न न करे !समय निश्चय ही करवट ले रहा है ,लेकिन वर्तमान मैं तो हमारा समाज पुरुष प्रधान है और नारी को सबला समझने में असमर्थ है !
शिवानी जी
हम सब अपने अपने पूर्व आग्रहों से घीरे रहते हैं . सब जिन्दगी को अपने नज़रिये से देखते हैं . नारी अबला हैं या सबला ये फैसला उसे खुद करना है लेकिन बार बार कवि इस बात को लिख कर उसे अबला महसूस करना चाहते हैं हम सब बस यही कह रहे हैं . अगर आप को लगता है समाज पुरूष प्रधान हैं तो आप कोशिश करे की वोह बात लिखे जिससे आप को पड़ने वाली नारी inspire हो . ६० साल से अगर हम अबला ही बने हैं और यही लिख रहे हैं तो गलती पुरूष की नहीं हमारी हैं . प्रतिशत १ हो या १०० सिर्फ़ तरकी दिखता हैं . आप पुरुषों से कुछ क्यों मांगना चाहती हैं , नारी का हाथ देने वाला हो तभी तो नारी सबला होगी . अपने अंदर उर्जा हैं हम सब के पर हम सब को आदत हो गयी हैं पुरूष के आधीन रहने की सो हम सब मांग मांग कर खुश होते हैं . आज़ादी मिलती नहीं हैं अर्जित की जाती हैं और जो इसे अर्जित कर लेते हैं वोह ही आगे जाते हैं साहित्य की अपनी मेहता हैं आप की कविता अच्छी हैं काव्य शिल्प की नज़र से पर कभी कभी नारी की सबला छवि को देखे !!!!!!!
NARI SO CALLED 'ABBLAA' NAHI HAI,,,NAHI HAI,,,,,NAHI HAI. IT WAS JUST A HISTORY...WE HAVE TO AGREE WITH IT...
नारी तब तक ही अबला है जब तक वह अपनी सारी शक्तिओं को सहेजती नहीं।
नारी तब तक ही अबला है जब तक वह अपनी सारी शक्तिओं को सहेजती नहीं।
Post a Comment