सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Saturday, June 7, 2008

प्रीत ---- वि- प्रीत

भाग १

सालो बाद
घर से बाहर रहा
पति लौट आया
घर मे तांता लग गया
बधाईयों का , मिठाईयों का
आशीष वचनों का , प्रवचनों का
गैस पर चाय बनाती
पत्नी सोच रही हैं
क्या वो सच मे भाग्यवान हैं ?
कि इतना घूम कर पति
वापस तो घर ही आया .
पर पत्नी खुश हैं कि
अब कम से कम घर से बाहर
तो मै जा पाउंगी
समाज मै मुहँ तो दिखा पाउंगी
कुलक्षिणी के नाम से तो नहीं
अब जानी जाऊँगी

भाग २

सालो बाद
घर से बाहर रही
पत्नी लौट आयी
घर मे एक सन्नाटा हेँ
व्याप्त हैं मौन
जैसे कोई मर गया हो और
मातम उसका हो रहा हैं
दो चार आवाजे जो गूंज रही हैं
वह पूछ रही हैं
कुलक्षिणी क्यो वापस आयी ??
जहाँ थी वहीं क्यो नहीं बिला गयी
सिगरेट के कश लेता
सोच रहा हैं पति
समाज मे क्या मुहँ
अब मै दिखाउँगा
कैसे घर से बाहर
अब मै जाऊँगा
और घर मे भी
इसके साथ
अब कैसे मै रह पाउँगा ??


© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

3 comments:

Poonam Agrawal said...

Ek satya hai ye samaj ka ...ise badlaa nahin ja sakta...
Ise shabdon me pirone ke liye badhai..

Unknown said...

सपाट सच सटीक शब्दों में...

रंजू भाटिया said...

बहुत सार्थक सही लफ्जों में कही गई यह कविता दिल को कहीं छू लेती है .