सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Wednesday, June 4, 2008

आइना

आइना साफ करने से
चेहरे कि विकृति
अगर आकृति बन जाती
तो आज सबके चेहरे
सुंदर और सलोने ही होते
और
सुंदर चेहरों के पीछे
छुपे विकृत दिमाग
काश कोई आइना दिखा पाता
इस विकृत होते समाज मे
जीना ही कुछ आसान हो जाता
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7 comments:

रंजू भाटिया said...

यह आईना दिख जाता तो शायद जीना आसान हो जाता .बहुत सही कहा आपने रचना ..

Anonymous said...

bilkul sahi baat,aaina kash aks dikha pata

mamta said...

काश कि ऐसा हो जाता।

Mohinder56 said...

आईना तो वही दिखाता है जो उसके सामने होता है.. मगर कभी कभी हम सच्चाई को देखना ही नहीं चाहते...

बालकिशन said...

सच है.
काश! काश! ऐसा हो पाता!

शोभा said...

आइना साफ करने से
चेहरे कि विकृति
अगर आकृति बन जाती
तो आज सबके चेहरे
सुंदर और सलोने ही होते
वाह बहुत सुन्दर। रचना जी इस सशक्त रचना के लिए दिल से बधाई।

ghughutibasuti said...

बहुत अच्छा लिखा है।
घुघूती बासूती