सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Tuesday, June 24, 2008

सफ़र - जिंदगी का

बस इसी का नाम जीवन है
तुम मेरी खुशियों को बांटो
मैं तुम्हारे ग़म में रहूँ शामिल
दो कदम तुम मुझ संग चलो
दो कदम मैं तुम संग चलूँ
कभी जिंदगी के सफ़र में
थक जाएँ कदम चलते चलते
दो पल का सहारा तुम मुझको दो
दो पल को मैं तुम्हे आराम दूं
जैसे भी रहें हम जिस हाल रहें
सफ़र जिंदगी का आसान रहे !

© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

3 comments:

रंजू भाटिया said...

हमसफर साथ साथ चले एक दूजे को समझ के तो यह जिंदगी बहुत आसान है सुंदर लिखी है आपने कविता यह

मीनाक्षी said...

बस यही तो चाहिए...काश सब इस बात को समझ जाएँ तो ज़िन्दगी आसान हो जाए.... बहुत खूबसूरत बात कह दी....

Anonymous said...

sundar rachana ke liye badhai ho.