सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Friday, June 6, 2008

चिंतन

चेतना के विराट सागर मे
लहरे आती हैं , जाती हैं
इन्हीं मे कहीं छिपा हैं
सत्य आत्म - चिंतन
सत्य विराट - चिंतन ।

© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

3 comments:

कुश said...

:) सुंदर भाव

Anonymous said...

bahut hi sahi kaha

रंजू भाटिया said...

सुंदर,सही अच्छी पंक्तियाँ