सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Sunday, June 29, 2008

रहस्यमयी.............

उम्र कोई हो,एक
लड़की-१६ वर्ष की,
मन के अन्दर सिमटी रहती है...
पुरवा का हाथ पकड़ दौड़ती है
खुले बालों में
नंगे पाँव....रिमझिम बारिश मे !
अबाध गति से हँसती है
कजरारी आंखो से,इधर उधर देखती है...
क्या खोया? -
इससे परे शकुंतला बन फूलों से श्रृंगार करती है
" बेटी सज़ा-ए-आफ़ता पत्नी" बनती होगी
पर यह,सिर्फ़ सुरीला तान होती है!
यातना-गृह मे डालो
या अपनी मर्ज़ी का मुकदमा चलाओ ,
वक्त निकाल ,
यह कवि की प्रेरणा बन जाती है ,
दुर्गा रूप से निकल कर
" छुई-मुई " बन जाती है-
यह लड़की!मौत को चकमा तक दे जाती है....
तभी तो"रहस्यमयी " कही जाती है...!

5 comments:

Anonymous said...

यह लड़की!मौत को चकमा तक दे जाती है....
तभी तो"रहस्यमयी " कही जाती है...!
bahut sunder shabd sankaln

समयचक्र said...

bahut sunder.

Anonymous said...

Rashmiji bhut sundar likh rhi hai. jari rhe.

Anonymous said...

an mein ek 16 saal ki rahasyamayi chipi hoti hai,wah

रंजू भाटिया said...

सुंदर लगी आपकी यह रचना