सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Friday, June 20, 2008

नई रचना........

सारथी आज भी श्रीकृष्ण रहे,
पर महाभारत के दिग्गज यहाँ नहीं थे-
थी एक पत्थर हो गई माँ और उसके मकसद,
विरोध में संस्कारहीन घेरे थे...........
कृष्ण ने गीता का ही सार दिया,
और दुर्गा का रूप दिया,
भीष्म पितामह कोई नहीं था,
ना गुरु द्रोणाचार्य थे कहीं.........
दुर्योधन की सेना थी,
धृतराष्ट्र सेना नायक ,
और साथ मे दुःशासन !
एक नहीं , दो नहीं ,पूरे २४ साल,
चिर-हरण हुआ मान का,
पर श्रीकृष्ण ने साथ न छोड़ा..........
जब-जब दुनिया रही इस मद में ,
कि-
पत्थर माँ हार गई ,
-तब - तब ईश्वर का घात हुआ ,
और माँ को कोई जीत मिली....
अब जाकर है ख़त्म हुआ,
२४ वर्षों का महाभारत ,
और माँ ने है ख़ुद लिखा,
अपने जीवन का रामायण...........

5 comments:

रंजू भाटिया said...

भाव पूर्ण कविता है

Anonymous said...

काफ़ी दिन बाद पोस्ट की रश्मि तुमने

Anonymous said...

bhut hi aachi rachana rashmiji. likhati rhe.

mehek said...

तब - तब ईश्वर का घात हुआ ,
और माँ को कोई जीत मिली....
अब जाकर है ख़त्म हुआ,
२४ वर्षों का महाभारत ,
और माँ ने है ख़ुद लिखा,
अपने जीवन का रामायण
bahut hi sundar bhav badhai

रश्मि प्रभा... said...

ye rachna ek satya hai........
dhanyawaad sabko,rachna main idhar vyast thi,26 ke baad ek sachchi kahani ke saath aaungi...