सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Wednesday, June 11, 2008

जिनकी चर्चा सरेआम हो गयी

नारी है एक प्यार की मूरत कविता पढ़ कर दीपक भारतदीप के मन में यह शब्द आये और लिख डाले। उन्हें यह कविता बहुत भावपूर्ण लगी और वह कहते हैं कि इसे पढ़कर एक कवि मन में इस तरह के विचार आना स्वाभाविक है। आज हम उनकी वही कविता यहाँ मेहमान कवि के रूप में दे रहे हैं ...


14 बरस की वह लड़की
रात को बिस्तर पर सोई थी
सुबह एक लाश हो गयी
सवाल उठते हैं ढेर सारे
मिलता नहीं कोई जवाब
पिता पर लगा है आरोप
पर मां क्यों खामोश हो गयी

एक पुरुष के अत्याचार की शिकार बच्ची
हैरान है परेशान है
एक बच्ची आती है उसके जिस्म में
अपने जीवन की सांस ढूंढती हुई
पर नानी इंतजार में थी शायद
भले ही अनैतिक होगा
लड़का हुआ तो अपना ही होगा
पर कोख से बाहर निकलते ही
नानी ने मचाया बवाल
बच्ची का गला घोंट दिया
जन्म लेते ही जननी ने
जेल ही उसकी आरामगाह हो गयी

हजारों खबरे हैं ऐसीं हैं
तब सोचता हूं क्यों लाचार हो जाती है औरत
क्यों औरत को ही बेबस बनाती औरत
आदमी के अनाचारों के हजारों किस्से हैं
पर औरत खुद भी क्यों बदनाम हो गयी

मां की ममता
बहिन का स्नेह
पत्नी का प्रेम
आदमी की होता है मन की पूंजी
कितने बदनसीब होते हैं
जो इससे वंचित हो जाते हैं
और फिर कहानी में जगह पाते हैं
जिनकी चर्चा सरेआम हो गयी

दीपक भारतदीप http://deepakraj.wordpress.com/

© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

4 comments:

Anonymous said...

ati sunder kavita haen aap ne isey yaahan psot kae rup daekar bahut achcha kiya ranjana . दीपक भारतदीप ko aksar padtee hun per kavita pehli baar padhi bhahut sahi likha haen

Anonymous said...

bulkul sach baat,bahut hi sundar kavita hai,nari hi itni majbooe kyun hai,usse apne kali ko murjhate huyi dekhna padhta hai,jab nari jagegi to hazaron kaliyan roushan hongi

neelima garg said...

good poem..the path of life is difficult for women...

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी said...

बहुत अच्छी कविता लिखी है, इस प्रकार की घटनों को रोकनें के लिये सामाजिक धारणाओं में परिवर्तन की आवश्यकता है.
चरित्र की बनावटी परिभाषा
देती है नारी को निराशा
केवल शारीरिक सम्बन्ध ही नहीं,
सत्य, ईमानदारी व सदाचरण,
व्याक्ति के द्वारा किया जाने वाला,
भ्रष्टाचार, कदाचार भी आना चाहिये,
चारित्र की हद में,
नारी ही क्यूं आये चरित्रहीनता की हद में,
पुरुष सब कुछ करके भी क्यों?
नहीं होता छोटा कद में,
इस प्रकार की हत्याओं पर विराम लगाना है,
मां बनने वाली लडकी पर,
नहीं इल्जाम लगाना है,
दोषी पुरुष भी है,
उसको ही हिसाब चुकाना है.