सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Monday, June 9, 2008

समय

समय ठहर जाए ,
ऐसा कब होता है
हम भी चलते जाए ,
ऐसा कब होता हैं ।
उम्र मायूसी के साथ
बीत जाती हैं
कोई हम तक पहुँच जाए ,
ऐसा कब होता हैं ।
सुबह , शाम और रात आती हैं ,
चली जाती हैं
जिन्दगी मुड़ कर पीछे देखे ,
ऐसा कब होता हैं ।
कुछ हुआ नहीं था ,
केवल कहानी बुनी थी हमने
कहानी हकीकत बन जाए ,
ऐसा कब होता हैं ।

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6 comments:

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति बधाई .

Anonymous said...

nehad khubsurat,kisi ek line ki tariff nahi kar sakti,puri nazm hi aashna hai,aafrin

mamta said...

बहुत सुंदर !
एक-एक शब्द बोलता हुआ।

रंजू भाटिया said...

सुंदर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति

Ila's world, in and out said...

ek ek shabd lajawaab hai aunty ki kavita ka.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

हृदय से निकले सहज उद्गार.
बधाई
डा.चंद्रकुमार जैन