ऐसी ही हूँ मैं
सब का ख़याल रखती हूँ अपने साथ
कभी बेटी,कभी बहन,कभी मा,कभी अर्धांगिनी बनकर
कुछ भी नही चाहा बदले में,
बस अपना स्वतंत्र अस्तित्व खोना नही मुझे
मुश्किलों में डट कर खड़ा होना
छोटी छोटी खुशियों को सहेजना सवारना
वक़्त के साथ ढलना ,दुनिया के साथ चलना
आता है मुझे,सिखती रहती हूँ नये कदम
मगर मुझे इस बात से इनकार नही
जितनी मजबूत मन हूँ,उतनी ही कोमल दिल भी
शब्दों के ज़हरीले तीर हताहत कर देते है
वही प्यार के दो बूँदो की बरसात
सब क्लेश बहा देते है
दिल को सवेदनाओ में भीगो देते
ऐसी ही हूँ मैं
लम्हे मुझे खुद से मिला देते है
mehek
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!