सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Wednesday, May 28, 2008

तुम कहो मैं सुनूँ---


तुम कहो मैं सुनूँ
मैं कहूँ तुम सुनो
ज़िन्दगी प्यार से यूँ गुज़रती रहे—

जब भी हारी थी मैं
तुमने सम्बल दिया
जब गिरे थक के तुम
मेरा आश्रय लिया
हम अधूरे बहुत
एक दूजे के बिन
दिल की बातें यूँ ही दिल समझते रहें
ज़िन्दगी प्यार से यूँ गुज़रती रहे—

तुम हुए मेंहरबाँ
झोली सुःख से भरी
मैने चुन-चुन सुमन
प्रेम बगिया भरी
अब ना सोचो किसे
पीर कितनी मिली
हर घड़ी दुःख की गागर
छलकती रहे—
ज़िन्दगी प्यार से------

तुम ना रोको मुझे
मैं ना टोकूँ तुम्हें
दोनो मिलकर चलें
एक दूजे के संग
दिन महकता रहे
रात ढ़लती रहे
ज़िन्दगी प्यार की

धुन पे चलती रहे--
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

5 comments:

Ashok Pandey said...

दिन महकता रहे
रात ढ़लती रहे
ज़िन्दगी प्यार की
धुन पे चलती रहे
बहुत सुंदर। जिंदगी यूँ ही प्यार से गुजरे तो जिंदगी है।

बालकिशन said...

सुंदर कविता.
मधुर भाव.
आभार.

Anonymous said...

sunder

Anonymous said...

बहुत उत्तम नर-नारी एक दूसरे के बिना रह ही नही सकते, दोनो का साथ-साथ चलना दोनो के लिये सुखद व आनन्दपूर्ण है. दोनो विरोध व टकराव के साथ नही प्रेम के साथ रहै. यही सभी के लिये आदर्श है. साथ-साथ चलते रहै.......

रंजू भाटिया said...

बहुत ही सुंदर बात लिखी है आपने शोभा जी ...बहुत खूब कहा एक साथ चल के ही सब अच्छा लगता है सुंदर भाव.