जहाँ भी मनाई हों
लड़कियों के जाने की
लड़को के जाने पर
बंदिश लगा दो वहाँ
फिर ना होगा कोई
रेड लाइट एरिया
ना होगी कोई
कॉल गर्ल
ना होगा रेप
ना होगी कोई
नाजायज़ औलाद
होगा एक
साफ सुथरा समाज
जहाँ बराबर होगे
हमारे नियम
हमारे पुत्र , पुत्री
के लिये
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
लड़कियों के जाने की
लड़को के जाने पर
बंदिश लगा दो वहाँ
फिर ना होगा कोई
रेड लाइट एरिया
ना होगी कोई
कॉल गर्ल
ना होगा रेप
ना होगी कोई
नाजायज़ औलाद
होगा एक
साफ सुथरा समाज
जहाँ बराबर होगे
हमारे नियम
हमारे पुत्र , पुत्री
के लिये
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5 comments:
ह्म्म बात तो गहरी है पर ..कौन कितना कैसे समझेगा इसको ..यह उसकी अपनी सोच पर निर्भर करता है
मनाही या बन्दिश न लगा कर बस नियम हों खुद के. अपनी सही सोच से चलें एक दूसरे का सम्मान करते हुए.... यह भाव आ जाए तो कई समस्याएँ सुलझ जाएँ.
ये कविता महज़ कविता नहीं...बहुत महत्वपूर्ण-ज्वलंत मुद्दा है...ये क्रांति की सशक्त अनुभूति है...मगर इसके नियम संविधान नहीं हो सकते...जो लागू भी किये जा सकें...ये कतई मुमकिन नहीं...और इस सोच से अगर आपको लगता है...कि नारी पर होने वाले सारे बुरे क्रतों पर विराम लग जायेगा...तो मैं सहमत नहीं. कितना विस्तार कर गईं हैं ये घटनाएं...(अगर होतीं हैं तो) जब घर में ही इक़ बलात्कारी हो सकता है...तो नारी को "फिर कहा रखा जाये" और अगर खतरा आदमी से है तो फिर "इसे" कहा रखा जाए.
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likhte rahiye...with more wishes
मन के आइने पर एक खरोंच जैसा बना देती है ये कविता
लिखने वाले की खूबी है ये
thank you all for appreciating the thought behind the poem
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