वह आज की नारी है
हर बात मे पुरुष से उसकी बराबरी है
शिक्षित है कमाती है
खाना बनाने जेसे
निकृष्ट कामो मे
वक़्त नहीं गवाँती है
घर कैसे चलाए
बच्चे कब पैदा हो
पति को वही बताती है
क्योकि उसे अपनी माँ जैसा नहीं बनना था
पति को सिर पर नहीं बिठाना था
उसे तो बहुत आगे जाना था
अपने अस्तित्व को बचाना था
फिर क्यों
आज भी वह आंख
बंद कर लती है
जब की उसे पता है
की उसका पति कहीँ और भी जाता है
किसी और को चाहता है
समय कहीं और बिताता है
क्यों आज भी वह
सामाजिक सुरक्षा के लिये
ग़लत को स्विकारती है
सामाजिक प्रतिशठा के लिये
अपनी प्रतिशठा को भूल जाती है
और पति को सामाजिक प्रतिशठा कव्च
कि तरह ओढ़ती बिछाती है
पति कि गलती को माफ़ नहीं
करती है
पर पति की गलती का सेहरा
आज भी
दूसरी औरत के स्रर पर
रखती है
माँ जेसी भी नहीं बनी
और रूह्रिवादी संस्कारो सै
आगे भी नहीं बढी.
फिर भी वह चीख चीखकर कहती है
मै आज की नारी हूँ
पुरुष की समान अधिकारी हूँ
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
हर बात मे पुरुष से उसकी बराबरी है
शिक्षित है कमाती है
खाना बनाने जेसे
निकृष्ट कामो मे
वक़्त नहीं गवाँती है
घर कैसे चलाए
बच्चे कब पैदा हो
पति को वही बताती है
क्योकि उसे अपनी माँ जैसा नहीं बनना था
पति को सिर पर नहीं बिठाना था
उसे तो बहुत आगे जाना था
अपने अस्तित्व को बचाना था
फिर क्यों
आज भी वह आंख
बंद कर लती है
जब की उसे पता है
की उसका पति कहीँ और भी जाता है
किसी और को चाहता है
समय कहीं और बिताता है
क्यों आज भी वह
सामाजिक सुरक्षा के लिये
ग़लत को स्विकारती है
सामाजिक प्रतिशठा के लिये
अपनी प्रतिशठा को भूल जाती है
और पति को सामाजिक प्रतिशठा कव्च
कि तरह ओढ़ती बिछाती है
पति कि गलती को माफ़ नहीं
करती है
पर पति की गलती का सेहरा
आज भी
दूसरी औरत के स्रर पर
रखती है
माँ जेसी भी नहीं बनी
और रूह्रिवादी संस्कारो सै
आगे भी नहीं बढी.
फिर भी वह चीख चीखकर कहती है
मै आज की नारी हूँ
पुरुष की समान अधिकारी हूँ
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
3 comments:
bahut khub rachana ji,aaj ki nari ka man prastut hua hai kavita mein,kyun aage nikalkar bhi wo rudhivadi parampara ki bediyaan tod nahi pati,galti chahe kisiki bhi ho agar sangin hai uspar parda nahi dalna chahiye.khul ke samana karna chahiye,ye to sahi hai ki pati mahashay ko vah pratishtha ki tarah odhati bichati hai.chahe kitni bhi padhi likhi ho chahe bahar ki puri duniya uski mutthhi mein ho,magar uski duniya uska pati hi hota hai?
vaise hum itna jarur kahena chahenge ki nari career oreinted ho,swabal khadi ho,kisi ki mohtaj na ho,ye hum bhi chahte hai,magar maa (mother ) banne ka hakk ishwar ne sirf nari ko diya hai,kisi bhi purush ko ye hak nahi ki ek nayi zindagi is duniya mein la sake.
so she should respect the natures law and kuch samay maa ki zimeddari bhi sambhale,maa bane,chahe nari aur purush kitne bhi barabar ho,magar ye sach nahi nakara ja sakta ki nari is mamle mein purush se kangan bhar aage hai,ek janamdatri hai,bachha jyada maa par nirbhar hota hai,atleast till baby is breast feeding.so she should give time to it.career karke ye sab kar sake thik,varna thodi chutti lele,
nisarg ka niyam bhi bada ajeeb hai,jo aurat maa banna chahti hai,she faces problem of infertility and who is capable of becoming mother,she never wants to,thats what kinda patients we handle everyday.
ye to hamara nazariya hai,one thing when i will decide to become mother(may be in next few months),at that time my only priority will be ma kid,nothing else,kisiko bhi is baat se do maat ho sakta hai,sab ki apni soch.
बहुत कुछ कह दिया है आपने अपनी इस कविता मैं रचना जी ..सच में कई जगह आगे बढ़ के भी वह अपनी उस रुदिवादिता से आगे नही बढ़ पायी है ..शायद अभी उसको मिले संस्कारों मैं वह सब है जो उसको उसकी माँ दादी नानी के खून से मिला है ..पर वक्त बदलेगा जरुर इस पर भी .धीरे धीरे यह भी दिखने लगा है ...साफ लफ्जों में लिखी आपकी कविता अच्छी लगी
Bilkul sahi hi nari ki dastaan bayaan ki hai aapne in chand panktiyo me .aaj yeh halaat ban gye h ki aaj nari apne hi wajood ki guhaar laga rhi h .naari shashktikaran k liye ladai kr rhi .mahila swayam me shashkt h iske liye use apni hi bahno ko jagrat krna pad rha hai.aakhir is samaj me ak nari shashkt hone k baavjood bhi apne adhikaro se khi na khi banchit si rah jati h...Q parivaar, jimedaari, risto k bojh ,sanskar shaayad yhi chije uski bediyaan ban k rah jati..........
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