माँ तुम……
बहुत याद आ रही हो
एक बात बताऊँ………
आजकल…..
तुम मुझमें समाती जा रही हो
आइने में अक्सर
तुम्हारा अक्स उभर आता है
और कानों में अतीत की
हर एक बात दोहराता है
तुम मुझमें हो या मैं तुममें
समझ नहीं पाती हूँ
पर स्वयं को आज
तुम्हारे स्थान पर खड़ा पाती हूँ
तुम्हारी जिस-जिस बात पर
घन्टों हँसा करती थी
कभी नाराज़ होती थी
झगड़ा भी किया करती थी
वही सब……
अब स्वयं करने लगी हूँ
अन्तर केवल इतना है कि
तब वक्ता थी और आज
श्रोता बन गई हूँ
हर पल हमारी राह देखती
तुम्हारी आँखें ……..
आज मेरी आँखों मे बदल गई हैं
तुम्हारे दर्द को
आज समझ पाती हूँ
जब तुम्हारी ही तरह
स्वयं को उपेक्षित सा पाती हूँ
मन करता है मेरा…
फिर से अतीत को लौटाऊँ
तुम्हारे पास आकर
तुमको खूब लाड़ लड़ाऊँ
आज तुम बेटी
और मैं माँ बन जाऊँ
तुम्हारी हर पीड़ा, हर टीस पर
मरहम मैं बन जाउँ
तुम कितनी अच्छी हो
कितनी प्यारी हो
ये सारी दुनिया को बताऊँ
ये सारी दुनिया को बताऊँ© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
बहुत याद आ रही हो
एक बात बताऊँ………
आजकल…..
तुम मुझमें समाती जा रही हो
आइने में अक्सर
तुम्हारा अक्स उभर आता है
और कानों में अतीत की
हर एक बात दोहराता है
तुम मुझमें हो या मैं तुममें
समझ नहीं पाती हूँ
पर स्वयं को आज
तुम्हारे स्थान पर खड़ा पाती हूँ
तुम्हारी जिस-जिस बात पर
घन्टों हँसा करती थी
कभी नाराज़ होती थी
झगड़ा भी किया करती थी
वही सब……
अब स्वयं करने लगी हूँ
अन्तर केवल इतना है कि
तब वक्ता थी और आज
श्रोता बन गई हूँ
हर पल हमारी राह देखती
तुम्हारी आँखें ……..
आज मेरी आँखों मे बदल गई हैं
तुम्हारे दर्द को
आज समझ पाती हूँ
जब तुम्हारी ही तरह
स्वयं को उपेक्षित सा पाती हूँ
मन करता है मेरा…
फिर से अतीत को लौटाऊँ
तुम्हारे पास आकर
तुमको खूब लाड़ लड़ाऊँ
आज तुम बेटी
और मैं माँ बन जाऊँ
तुम्हारी हर पीड़ा, हर टीस पर
मरहम मैं बन जाउँ
तुम कितनी अच्छी हो
कितनी प्यारी हो
ये सारी दुनिया को बताऊँ
ये सारी दुनिया को बताऊँ© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
9 comments:
वाह शोभा जी, संवेदित कर दिया आपने..
***राजीव रंजन प्रसाद
kya baat haen , har shabd man ko chutaa haen aur apna saa lagta haen
शोभा जी वाह! मगर आपने रुआंसा कर दिया.
यह पहले भी पढी है हर बार यह उतनी ही खूबसूरत लगी है ..और भावुक कर जाती है
achchhi kavita hai..bahut bhawnatmak.
जगत को दिया गया महान वरदन "माँ"… सारा प्यार, जिज्ञासा, ममता, करुणा का द्वार… संपूर्ण है यह अभिव्यक्ति और शाश्वत है इसकी गीता…।
बहुत ही उम्दा रचना है…।
तुम्हारी जिस-जिस बात पर
घन्टों हँसा करती थी
कभी नाराज़ होती थी
झगड़ा भी किया करती थी
वही सब……
अब स्वयं करने लगी हूँ
अन्तर केवल इतना है कि
तब वक्ता थी और आज
श्रोता बन गई हूँ
shobhaji,dil ko chu gayi ye kavita,har insaan ke mann ki baat,sundar.bahut badhai
wow , great feelings for mother....
बहुत बहुत बहुत अच्छी कविता,एकदम दिल को छु लेने वाली,आपको हार्दिक बधाई
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