सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Friday, May 9, 2008

माँ का आँचल

हर वो आँचल
जहाँ आकर
किसी का भी मन
बच्चा बन जाये
और अपनी हर
बात कह पाए
जहाँ तपते मन को
मिलती हो ठंडक
जहाँ भटके मन को
मिलता हो रास्ता
जहाँ खामोश मन को
मिलती हो जुबाँ
होता है एक माँ
का आँचल
कभी मिलता है
ये आंचल एक
सखी मे
तो कभी मिलता है
ये आँचल एक
बहिन मे
तो कभी मिलता है
ये आँचल एक
अजनबी मे
ओर कभी कभी
शब्द भी एक
आँचल बन जाते है
इसी लिये तो
माँ की नहीं है
कोई उमर
ओर परिभाषा

© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

4 comments:

रंजू भाटिया said...

बहुत सही लिखा है ..स्त्री का यह रूप ही तो जग को बांधे रखते हैं :) सुंदर रचना

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अच्छी रचना...... अच्छा ख्याल.
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बधाई.

Anonymous said...

bilkul sahi kaha,bahut hi badhiya,maa ki koi umar nahi aur koi paribhasha bhi nahi.

रश्मि प्रभा... said...

utkrisht rachna......naari ke prabal,akhandit rup ka bhavya varnan.......