हर वो आँचल
जहाँ आकर
किसी का भी मन
बच्चा बन जाये
और अपनी हर
बात कह पाए
जहाँ तपते मन को
मिलती हो ठंडक
जहाँ भटके मन को
मिलता हो रास्ता
जहाँ खामोश मन को
मिलती हो जुबाँ
होता है एक माँ
का आँचल
कभी मिलता है
ये आंचल एक
सखी मे
तो कभी मिलता है
ये आँचल एक
बहिन मे
तो कभी मिलता है
ये आँचल एक
अजनबी मे
ओर कभी कभी
शब्द भी एक
आँचल बन जाते है
इसी लिये तो
माँ की नहीं है
कोई उमर
ओर परिभाषा
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
जहाँ आकर
किसी का भी मन
बच्चा बन जाये
और अपनी हर
बात कह पाए
जहाँ तपते मन को
मिलती हो ठंडक
जहाँ भटके मन को
मिलता हो रास्ता
जहाँ खामोश मन को
मिलती हो जुबाँ
होता है एक माँ
का आँचल
कभी मिलता है
ये आंचल एक
सखी मे
तो कभी मिलता है
ये आँचल एक
बहिन मे
तो कभी मिलता है
ये आँचल एक
अजनबी मे
ओर कभी कभी
शब्द भी एक
आँचल बन जाते है
इसी लिये तो
माँ की नहीं है
कोई उमर
ओर परिभाषा
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4 comments:
बहुत सही लिखा है ..स्त्री का यह रूप ही तो जग को बांधे रखते हैं :) सुंदर रचना
अच्छी रचना...... अच्छा ख्याल.
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बधाई.
bilkul sahi kaha,bahut hi badhiya,maa ki koi umar nahi aur koi paribhasha bhi nahi.
utkrisht rachna......naari ke prabal,akhandit rup ka bhavya varnan.......
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