सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Sunday, May 25, 2008

एक सच्ची श्रद्धांजली " आरुषि..! अच्छा हुआ हम नहीं मिले "

- विवेक सत्य मित्रम् की लिखी यह कविता दिल को छूने वाली है और यही एक सच्ची श्रद्धांजली उस मासूम बच्ची को ..यहाँ पर यह गेस्ट कवि के रूप में पोस्ट की जा रही है ..

आरुषि..! अच्छा हुआ हम नहीं मिले
अच्छा हुआ-
हम कभी किसी चौराहे,
किसी गली या फिर-
किसी नुक्कड़ पर नहीं टकराए-
अच्छा हुआ-
तुम उन तमाम लड़कियों में-
कभी शऱीक नहीं थी-
जो गाहे बगाहे-
मेरे ख्वाबों का हिस्सा बनीं-
अच्छा हुआ-
हमारी जिंदगी के सभी रास्ते-
अलग-अलग रहे-
कभी साझा नहीं हुए-
अच्छा हुआ-
कोई ऐसी लड़की नहीं गुजरी-
मेरी नजरों से-
जिसके चेहरे से मिलता हो-
तुम्हारा चेहरा-
वरना-
मुश्किल होता, मेरे लिए-
तु्म्हारी खूबसूरत तस्वीर पर-
वो हर्फ उकेरना-
जिनसे टपक रहा हो खून-
मुश्किल होता, मेरे लिए-
खड़े करना सवाल-
तु्म्हारे चरित्र पर-
मुश्किल होता, मेरे लिए-
हाथ पर हाथ रखे...
देखना वो तमाशा-
जिसमें शामिल रहा मैं भी-
शुरु से आखिर तक-
बना रहा हिस्सा-
भेड़ियों के भीड़तंत्र का।
आरुषि...!
अच्छा हुआ हम कभी नहीं मिले।

- विवेक सत्य मित्रम्
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

3 comments:

Anonymous said...

aap ki samvednaaye man ko chu gayee

Udan Tashtari said...

अतिसंवेदनशील कविता कल पढ़ी थी, अच्छा किया आपने यहाँ पोस्ट भी की. आभार.

neelima garg said...

sentimental poem on a very unfortunate event...