सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Monday, May 19, 2008

बीबा और बीबी

पुरुष होने का सिला उन्होने एक शब्द में जतला दिया
प्यार भारी ज़िंदगी का यह उन्होने सिलसिला दिया
मैं तो मौन रहता हूँ प्रिय,ना तुमको कुछ कहता हूँ
एक बीबे पति की तरह हर बात तुम्हारे सहता हूँ


कितने सुंदर शब्द हैं यह जो सुने मेरी किस्मत पर रश्क़ करे
पर यही चार शब्द मेरी आत्मा को घायल कर गये
कि तुम तो मौन रह कर देवता हो गये
कुछ अत्याचार ना कर पाए इस लिए "बीबे" हो गये

पर आज मैं तुमसे पूछती हूँ कि मेरे
किस कसूर पर तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो
सुबह सबसे जल्दी उठ कर
बच्चो को स्कूल भेजना मेरा कसूर था???
नौकरी करके तुम्हारे हाथ बाँटना कसूर था???
घर आ के दुबारा चकारी करना कसूर था???
सुबह शाम अपने आप को घर पर समर्पित करना कसूर था?

हाँ अगर यह कसूर है तो मत दबाओ अपनी भावनाओ को
मत रहो चुप और मत बनो देवता ..
कुछ तीखी तीखी बातें मुझे सुनाओ
और हो सके तो हाथ भी तुम मुझ पर उठाओ
शायद तभी तुम कह सकोगे
पति धर्म निभाया है
और एक असली पति बन कर ज़िंदगी का रस पाया है

हैरानी होती है तुम्हारे दोगले विचारों पर
एक तरफ़ तो कहते हो पत्नी अर्धागनी होती है
पर असल में तो यह बाते सिर्फ़ एक छलावा हैं
पत्नी के रूप में मुफ़्त में आया को पाया है

महीने की तनख़्वाह दुगनी हुई है
पर पुरुषत्व में कही कमी नही हुई है
जो पत्नी दिन रात घर बाहर खट कर दिन अपने बिताती है
सारी दुनिया में वही सबसे तेज़ तरार जानी जाती है
पति जो कभी कभी घर रहता है
घर की चिंताओं से बेख़बर रहता है
अतिथि सा सत्कार पा कर मौन रहता है
पर वही सबकी नज़रो में " बीबा " समझा जाता है

वाह री दुनिया तेरा यही दस्तूर
पति यहाँ का राजा .
और पत्नी हर दम मजबूर है
पति देवता गिना जाएगा
और पत्नी चरणो की दासी
पर मेरी जैसी पत्नी पा कर
हो जाएगी तुम्हारी ऐसी तैसी
ना ज़ुल्म करा है ना ज़ुल्म सहूंगी
प्यार से अपना बनाया तो
जान भी अपनी दे दूँगी
पुरुष होने का जो अहम निभाया
तो नाको चने चबवा दूँगी
शिक्षा दीक्षा के हर मुकाम पर
तुमसे मैंने बढ़त पाई है
"बीबे" तो अब तुम क्या बनोगे
सही अर्थों में अब "बीबी" बनने की बारी अब मेरी आई है



बीबा ...एक पंजाबी लफ्ज़ है जिसका अर्थ सीधा होता है ..

आज की नारी घर और बाहर दोनो मोर्चो को बख़ूबी संभाल रही है
मेरी छोटी बहन भी इसी श्रेणी में आती है ...एक दिन उसने कामकाजी पत्नी की
पीड़ा को यूं कविता व्यंग में लिखा


पूनम भाटिया द्वारा लिखित.
2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

2 comments:

दुष्टात्मा said...

व्यंग के नाम पर कुंठा परोसने को क्या कहना चाहिए?

Anonymous said...

व्यंग के नाम पर कुंठा परोसने को क्या कहना चाहिए?
naari sashaktikaran