सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Friday, May 16, 2008

मनाई , बंदिश और नियम

जहाँ भी मनाई हों
लड़कियों के जाने की
लड़को के जाने पर
बंदिश लगा दो वहाँ
फिर ना होगा कोई
रेड लाइट एरिया
ना होगी कोई
कॉल गर्ल
ना होगा रेप
ना होगी कोई
नाजायज़ औलाद
होगा एक
साफ सुथरा समाज
जहाँ बराबर होगे
हमारे नियम
हमारे पुत्र , पुत्री
के लिये
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5 comments:

रंजू भाटिया said...

ह्म्म बात तो गहरी है पर ..कौन कितना कैसे समझेगा इसको ..यह उसकी अपनी सोच पर निर्भर करता है

मीनाक्षी said...

मनाही या बन्दिश न लगा कर बस नियम हों खुद के. अपनी सही सोच से चलें एक दूसरे का सम्मान करते हुए.... यह भाव आ जाए तो कई समस्याएँ सुलझ जाएँ.

Amit K Sagar said...

ये कविता महज़ कविता नहीं...बहुत महत्वपूर्ण-ज्वलंत मुद्दा है...ये क्रांति की सशक्त अनुभूति है...मगर इसके नियम संविधान नहीं हो सकते...जो लागू भी किये जा सकें...ये कतई मुमकिन नहीं...और इस सोच से अगर आपको लगता है...कि नारी पर होने वाले सारे बुरे क्रतों पर विराम लग जायेगा...तो मैं सहमत नहीं. कितना विस्तार कर गईं हैं ये घटनाएं...(अगर होतीं हैं तो) जब घर में ही इक़ बलात्कारी हो सकता है...तो नारी को "फिर कहा रखा जाये" और अगर खतरा आदमी से है तो फिर "इसे" कहा रखा जाए.
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likhte rahiye...with more wishes

Alok Dwivedi said...

मन के आइने पर एक खरोंच जैसा बना देती है ये कविता
लिखने वाले की खूबी है ये

Anonymous said...

thank you all for appreciating the thought behind the poem