सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Thursday, December 9, 2010

वह नारी

देखा था मैंने 'उस' नारी को,
फूलों सी कोमल सुकुमारी को |
जन्म लेते होठों पर उसकी एक हँसी खिली थी,
परियों सी प्यारी वह एक नन्ही कली थी|
उन आँखों में कुछ आशा थी,
पर चारों ओर निराशा थी|
निराशा थी कुछ गरीबी की,
कुछ थी 'उसके' जन्म की |
डर था कुछ चिंताएं थीं ,
भय और कुछ शंकाएँ भी |
क्या यह नन्ही कली खिल पायेगी ?
या गरीबी के धुल में मिल जाएगी ?
क्या यौवन का फूल हँस पायेगा ?
या किसी के हाथों मसला  जायेगा ?
सीता के लिए था एक रावण,
जो अब कदम कदम पर बसता है |
महाभारत में था था एक दुर्योधन,
पग पग पर जो अब हँसता है |
सीता को तो राम मिले थे,
द्रौपदी को कृष्ण सहाय हुए थे |
इसे भी कोई राम मिलेगा क्या ?
इसके लिए कोई कृष्ण बनेगा क्या ?
नियति उसके साथ में नहीं था,
मौत भी उसके हाथ में नहीं था |
जन्म लिया तो उसे जीना ही था,
गम को खाके आंसुओं को पीना हीं था|
अध् खिली थी यौवन  की कली अभी ,
पर संकटें आ चुकी थी सभी |
हर एक कदम पे रावण, तो दुसरे पर दुर्योधन खड़ा था |
न राम ना हीं रक्षा में उसके कोई कृष्ण खड़ा था |
मौके पर सबने उसे अंगूठा हीं दिखलाया |
काम आया तो बस आत्मबल हीं काम आया |
नहीं थी वह निर्बल, शक्तिहीन, अबला |
थी वह तो सबल, सशक्त, सबला |
देखा है आज भी मैंने उस नारी को ,
कष्टों में घिरी देखा उस  बेचारी को |
होठों पर उसके अब हँसी नहीं है ,
आँखों में अब आशाएं नहीं है |
गरीबी की भट्टी और भाग्य के आंच में खूब तपी है ,
पर चमकता सोना नहीं वह तो पत्थर बन चुकी है |
पत्थर क्यूँ? क्यूंकि वह रोती  नहीं है ?
री अभागिनी तू क्यूँ रोती नहीं है ?
हाँ वह क्यूँ रोएगी ? रोकर वह क्या पायेगी ?
रोने से क्या नियति बदल जाएगी?
विधि को उसपे तरस  आएगी ?
नहीं वह नहीं रोएगी कभी नहीं रोएगी |
भाग्य नहीं कर्म हीं की होकर रहेगी |
कर्म हीं से से तो वह रोटी पायेगी |
भाग्य भरोसे बस आँसु पायेगी |
रोकर वह क्या क्या कर पायेगी ?
क्या भाग्य को बदल पायेगी ?
नहीं वह दरिद्र है, दरिद्र हीं रह जाएगी |
नारी है बस नारी हीं रह जाएगी |
पत्थर है सोना नहीं बन पायेगी |
हाँ मजदूरनी है बस वही बनी रह जाएगी |
                           .................आलोकिता 
© 2008-10 सर्वाधिकार सुरक्षित!

9 comments:

vijay kumar sappatti said...

बहुत सुन्दर कविता .. एक स्त्री के सारे रूपों को प्रस्तुत करती हुई ..

बधाई

विजय

Alokita Gupta said...

Dhanyawaad Vijay sir

vandana gupta said...

नारी जीवन का बेहद सशक्त चित्रण्।

Rashmi Swaroop said...

I just loved it when I read it on your blog... :)
And found it awesome today also... Creating a whole picture of Naari..

Alokita Gupta said...

thanks wandana ji and rashmi u 2

Shikha Kaushik said...

ek stri ke jeevan ki vishamtaon ko bahut hi yatharth roop me prastut kiya hai .badhai.

Alokita Gupta said...

Dhanyawaad

Unknown said...

बहुत ही अच्छी प्रस्तुती ।
बहुत अच्छा लगा पढ़ के|
कृप्या मेरी भी कविता पढ़ी जाय|
www.pkrocksall.blogspot.com

Alokita Gupta said...

Thanks Pradeep ji