देखा था मैंने 'उस' नारी को,
फूलों सी कोमल सुकुमारी को |
जन्म लेते होठों पर उसकी एक हँसी खिली थी,
परियों सी प्यारी वह एक नन्ही कली थी|
उन आँखों में कुछ आशा थी,
पर चारों ओर निराशा थी|
निराशा थी कुछ गरीबी की,
कुछ थी 'उसके' जन्म की |
डर था कुछ चिंताएं थीं ,
भय और कुछ शंकाएँ भी |
क्या यह नन्ही कली खिल पायेगी ?
या गरीबी के धुल में मिल जाएगी ?
क्या यौवन का फूल हँस पायेगा ?
या किसी के हाथों मसला जायेगा ?
सीता के लिए था एक रावण,
जो अब कदम कदम पर बसता है |
महाभारत में था था एक दुर्योधन,
पग पग पर जो अब हँसता है |
सीता को तो राम मिले थे,
द्रौपदी को कृष्ण सहाय हुए थे |
इसे भी कोई राम मिलेगा क्या ?
इसके लिए कोई कृष्ण बनेगा क्या ?
नियति उसके साथ में नहीं था,
मौत भी उसके हाथ में नहीं था |
जन्म लिया तो उसे जीना ही था,
गम को खाके आंसुओं को पीना हीं था|
अध् खिली थी यौवन की कली अभी ,
पर संकटें आ चुकी थी सभी |
हर एक कदम पे रावण, तो दुसरे पर दुर्योधन खड़ा था |
न राम ना हीं रक्षा में उसके कोई कृष्ण खड़ा था |
मौके पर सबने उसे अंगूठा हीं दिखलाया |
काम आया तो बस आत्मबल हीं काम आया |
नहीं थी वह निर्बल, शक्तिहीन, अबला |
थी वह तो सबल, सशक्त, सबला |
देखा है आज भी मैंने उस नारी को ,
कष्टों में घिरी देखा उस बेचारी को |
होठों पर उसके अब हँसी नहीं है ,
आँखों में अब आशाएं नहीं है |
गरीबी की भट्टी और भाग्य के आंच में खूब तपी है ,
पर चमकता सोना नहीं वह तो पत्थर बन चुकी है |
पत्थर क्यूँ? क्यूंकि वह रोती नहीं है ?
री अभागिनी तू क्यूँ रोती नहीं है ?
हाँ वह क्यूँ रोएगी ? रोकर वह क्या पायेगी ?
रोने से क्या नियति बदल जाएगी?
विधि को उसपे तरस आएगी ?
नहीं वह नहीं रोएगी कभी नहीं रोएगी |
भाग्य नहीं कर्म हीं की होकर रहेगी |
कर्म हीं से से तो वह रोटी पायेगी |
भाग्य भरोसे बस आँसु पायेगी |
रोकर वह क्या क्या कर पायेगी ?
क्या भाग्य को बदल पायेगी ?
नहीं वह दरिद्र है, दरिद्र हीं रह जाएगी |
नारी है बस नारी हीं रह जाएगी |
पत्थर है सोना नहीं बन पायेगी |
हाँ मजदूरनी है बस वही बनी रह जाएगी |
.................आलोकिता
9 comments:
बहुत सुन्दर कविता .. एक स्त्री के सारे रूपों को प्रस्तुत करती हुई ..
बधाई
विजय
Dhanyawaad Vijay sir
नारी जीवन का बेहद सशक्त चित्रण्।
I just loved it when I read it on your blog... :)
And found it awesome today also... Creating a whole picture of Naari..
thanks wandana ji and rashmi u 2
ek stri ke jeevan ki vishamtaon ko bahut hi yatharth roop me prastut kiya hai .badhai.
Dhanyawaad
बहुत ही अच्छी प्रस्तुती ।
बहुत अच्छा लगा पढ़ के|
कृप्या मेरी भी कविता पढ़ी जाय|
www.pkrocksall.blogspot.com
Thanks Pradeep ji
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