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एक दिन
अपने ही विचारों में खोई
बैठी थी अकेली
तभी अचानक
प्यारी सखी चमेली
आई मेरे पास
और बोली
सुन ओ सहेली !
बता मेरी एक
साधारण-सी पहेली,
यह समाज और
समाज के सुसंस्कृत लोग
क्यों हो गए हैं संकुचित ?
क्यों खोए हैं अपने में ?
क्यों हैं सभी कुंठाग्रस्त ?
या फिर क्यों हैं
एक-दूसरे से त्रस्त ?
उत्तर साधारण-सा है बहन
आज किसी को
किसी के दुख से
न तो है कोई सरोकार,
न कोई मतलब
और न कोई दरकार,
कोई नहीं है सुखी
दूसरे के सुख से,
तो किसी के दु:ख से भी
नहीं हैं दुखी,
शायद होते हैं ऐसे ही
निर्विकार लोग
जिन्हें किसी से
नहीं होती है प्रीत
जो नहीं होते हैं
किसी के शत्रु
और न किसी के मीत ।
सखी की बात सुनकर
मन में विचारों को गुनकर
मैंने समझाया उसे
जीने का मतलब---
'सखी रोली !
बड़ी है तू भोली
क्या इतना नहीं जानती
इसमें है अपनी भलाई,
क्योंकि इस जग में
हरेक उठने वाले को
मिलती है एक चुनौती,
उसके लिए यह
होती है परीक्षा की घड़ी
कि उसमें कितना है धैर्य
और कितना आक्रोश,
या फिर कितना है रोष ।
इस चुनौती को
जो करता है स्वीकार
और नहीं करता तकरार
पाता है वह एकदिन
ऊँचाई का सर्वोच्च शिखर
जहाँ पहुँचना असम्भव नहीं
तो आसान भी नहीं ।
मेरी सलोनी-सी
प्यारी-सी सखी ।
मत हो उदास,
बात को ध्यान से समझ,
सुन और गुन
मत रख किसी से आस,
न कर किसी पर विश्वास,
निरंतर बढ़ती रह आगे
चढ़ती रह जीवन की सीढ़ियाँ
सीढ़ियाँ-दर-सीढ़ियाँ,
वह दिन दूर नहीं
जब पहुँचेगी तू
अंतिम सोपान पर
न होगा वहाँ स्वार्थ
न पीड़ा, न त्रास,
जहाँ मिलेगी नई दिशा
नई खुशी और
मिलेगा नया सवेरा
नया उल्लास ।
डॉ. मीना अग्रवाल
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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4 comments:
bahut sunder sandesh deti aapki rachna bahut acchhi lagi.
nari ke liye likhi gayi meri ye post avashy padhe...
http://anamika7577.blogspot.com/2010/12/blog-post_07.html
bahut achi rachna
ummed pe duniya kayam hai .aapki bhi ye ummed poori ho .best of luck
bahut jaandar abhivyakti .badhai .
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