रोज देखते हैं बल्कि ऐसा कम ही देखते हैं. कभी कोई कन्या सड़क पर फ़ेंक दी, कभी मंदिर में और कभी अस्पताल में ही छोड़ कर चल दिए. पढ़ लिया और रख दिया लेकिन कभी ऐसी ही कोई बात द्रवित कर जाती है. ऐसे ही आज ही ये खबर पढ़ी और फिर कुछ लिख ही गया उस कन्या का दर्द उसकी जुबानी ही छलक गया.
माँ , ओ मेरी माँ !
गर जिन्दा रही मैं
तो मैं लड़की ही रहूंगी,
बस तू ये दुआ कर -
जिसको तूने मरने को फेंका था
बस वो जिन्दा रह जाए.
ईश्वर मुझे बचा ले,
आँचल तेरा नहीं था
गर मेरे नसीब में,
कचरे के हवाले तो
तूने इस तरह से न किया होता.
तडपी मैं बहुत हूँ,
कुत्तों ने जब नोचा था,
लहुलुहान मेरे तन से ज्यादा पीड़ा
मेरे मन को हो रही थी.
नफरत की चिंगारी एक
मन में सुलग रही थी.
वो खुदा का बंदा था
देखा जिसने कचरे में
सीने से लगा कर मुझको
अस्पताल ले गया था .
उससे बड़े दयालु वे हैं
कितना सहेज कर
घावों को धो सुखाकर
दवा मुझे लगाई औ'
फाहों में मुझे रखा.
माँ गर जिन्दा रही मैं
लड़की तो मैं रहूंगी
पर तेरी जैसे
निर्मम माँ न बनूगी,
अपने जिगर के टुकड़े को
तेरे जैसे न तजूंगी.
गर जीने नहीं देना था,
तो जीवन क्यों दिया था?
टकराऊंगी जहाँ से
आँचल उसे मैं दूँगी,
ज़माने की हर हवा से
बचा के उसको हरदम
फूल सा कोमल जीवन उसे मैं दूँगी.
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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7 comments:
rekha ji bahut hi marmik kavita rachi hai aapne .man dravit ho gaya .aabhar . mere blog ''shikhakaushik666.blogspot.com 'par aapka hardik swagat hai .
द्रवित कर गयी कविता . पता नहीं माँ कैसे कठोर ह्रदय हो सकती है इतनी , समाज ठेकेदारों से दर ने उसे इतना कठोर बना दिया है
rachna ne man ko dravit ker diya .
hradya bedh gayee aapki kavita.sach hai aisee maa na ho ..
mere blog"kanooni gyan "par bhi aapka hardik swagat hai..
बेहद मार्मिक!
सही सन्देश! मार्मिक रचना!
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